बुधवार, 16 मार्च 2022

समकाल : कविता का स्त्रीकाल-36


चन्द्रकला त्रिपाठी की कविताएँ

1)-



 राजा को अभिनेता पसंद आता गया

उसका प्रजा पर असर ज़ोरदार दिखा

प्रजा वैसे तो कोई मुश्किल न थी

मगर ऐसे तो थी कभी और बहुत ज्यादा थी


राजा ने शिक्षा ली अभिनेता से मगर कहा इसे

गुप्त रखना

अभिनेता को भी दुनिया से यह रिश्ता छिपाना था

उसे प्रजा के हिए में अपनी जगह नहीं घटाना था


राजा ने कहा उसे प्रजा पर प्रभाव के मौके पर आंसू चाहिए

अभिनेता अचकचाया और अपना भेद बता गया

आंसू के मौके पर वह असली आंसू रोता है

अभिनय उसका इतना भी छल नहीं है कि वह रोने का

दिखावा करे

इन दिनों तो उससे हंसना हो ही नहीं पाता है

दिल में उसके मां के शव से चिपका एक बच्चा बिलखता है

इन दिनों कारोबार मंद है सबका

कोई भी कैसे भी प्रदर्शन में नहीं हिलगता


सुन रहा था सुकवि

उसने अपने भीतर बसे मुसाहिब को संभाला

राजा से कहा प्रभु

रोना बहुत आसान है

और प्रजा भी 

आंसू कौन देखता है

मुद्राएं संभाल लें


देखिए ऐसे

नहीं तो ऐसे 

सुकवि का चेहरा सिकुड़ता फैलता रहा

राजा अचरज से

चेहरे का बिगड़ना 

लटकना देखता रहा


आंसू पर चली बात तमाशा हुई जा रही थी

अभिनेता शर्मिंदा था

वह एक्ज़िट के बारे में सोच रहा था


ख़ैर

चंद्रकला त्रिपाठी

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2)-

 राजा ने कहा  ,



 मेरी प्रशंसा में लिखो

कवि को बहुत कम शब्दों की जरुरत पड़ी 

चिकने चपटे शब्दों से काम चल गया 

व्यंग्य की

वैदग्ध्य की

करुणा की 

गुंजाइश ही नहीं थी

जो ललित कलित चाहिए था उसे

यहां वहां

इसके उसके गद्य पद्य से उठा लिया


फिर भी निचुड़ उठा कवि

असली मुश्किल पेश आई व्यंग्य का गला घोटने में

आंखों में कील जड़ने में

करुणा को दरबदर करने में

निचुड़ उठा


राजाओं को कवियों की कहां कमी पड़ी कभी

कवि था कि गुम हो गया


कलेजे में गड्ढा लिए कवियों के पीछे 

अर्थियां  घूमती हैं


कुछ हैं जो राजाओं से ज्यादा

राजकवियों से डरते हैं


ख़ैर .....


चंद्रकला त्रिपाठी


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3)-



सड़कें चाहने लगीं हैं कि वे इन दिनों मखमल हो जाएं


मौसम नम होना चाहते हैं


आग भस्म कर देना चाहती है प्रेम के सारे प्रदर्शन


पृथ्वी हिल रही है कि सही करवट जीना चाहती है


पत्थर शोक में हैं कि वे इतने पत्थर तो नहीं थे


 मसखरे क़समें उठा रहे हैं कि उनके जुमले झूठे नहीं होते

बस नकाब खींचते रहे हैं


जानवर चाहते हैं कि वे भी कोई किताब लिखें इंसानों के बारे में

लिखें कि उनके लिए बेरहम होने का अर्थ इंसान होना हुआ जा रहा है


 चीलें गिद्ध सियार सभी मरघटों पर इतनी बरक़त नहीं चाहते थे

इतना बड़ा नहीं है उनका पेट


माएं अब बांझ होना चाहती हैं


बद्दुआएं हैं कि हैरान हैं 

वे सही जगह लगती ही नहीं


चंद्रकला त्रिपाठी

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4)-


बहुत दिन बीत जाने पर

 वह परछाइयों में घुल जाता है


हंसने के ढंग में

चुप्पी होकर धड़कता है 


संगसाथ में दोस्त की तरह बरतता है


ऐसा तो कोई नहीं होता इतना टिक कर रहने वाला

दुःख की तरह का


इस दुनिया में कौन है ऐसा जिसे

कहीं जाने की कोई हड़बड़ी नहीं


5)-


धीमें बहुत धीमें चलती दिखती हैं चींटियां 

बेसब्री दिखाने भर काया नहीं उनके पास 


 बहुत झुक कर नहीं उड़ते पक्षी 

हवा छितराने के लिए भी नहीं 


बहुत दिनों से सन्नाटा है इधर

उन्हे तो इधर का ही पता है


सूख चुका है बगल की बस्ती का हैंडपंप

अगल की कॉलोनी में पानी अभी बाक़ी है


बांध कर ले जाया जा रहा है भगेलू

उसका असली नाम भी अब यही हो गया है

पांच बजे बंद कर देनी थी अंडे की दुकान

वह आठ बजे अपने ठेले के साथ पकड़ा गया 

पीछे पीछे दौड़ती जा रही है नसीमा

चिल्ला नहीं रही है

सिर्फ़ बिलख रही है 


उसके पीछे कोई खोल ले जाएगा उसकी बकरी

आसपास बहुत दिनों से उपवास चल रहा है


नीरज को अब से आधी तनख्वाह भी नहीं मिलेगी 

सुधा को नहीं मिल रहा है साड़ियों में फाल टांकने का काम भी

पढ़े-लिखे दोनों भीख मांगने में हिचकते हैं

छ: महीने के छोटे बच्चे के लिए भी जीना नहीं चाहते


किसी की कुंडी खटकी तो पृथ्वी तक कांप गई

क्या है ? कोई कुरस हो कर चिल्लाया 

स्त्री ने फोंफर से देखा उस दूसरी स्त्री को

उसकी उम्र कम थी और वह कांप रही थी

 उसके हाथ में गीली हुई पर्ची कांपती इस हांथ में चली आई और वह स्त्री अदृश्य हो गई

फोन नंबर था उस पर एक

पानी से पसर गए थे नंबर मगर बाक़ी थे


क्या है क्या है ?

वाली आवाज़ सख़्त थी 

दूसरों के झमेले में कोई नहीं पड़ता आजकल


बहुत दिनों से उस घर में स्त्री के नहीं होने की आवाज़ है

बाक़ी आवाज़ें अब ज़्यादा हैं , जैसे घिसटती हुई रुकतीं है बड़ी गाड़ियां और

सन्नाटे में किसी के नहीं होने को बार बार सुना जाता है


स्त्री ने हिम्मत करके उस नंबर पर फोन कर दिया मगर तब नहीं किया जब 

ख़त्म होने से पहले कुछ बचा लिया जाता है


बचा तो वह भी नहीं

वह छ: महीने का बच्चा भी


चंद्रकला त्रिपाठी



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परिचय

चन्द्रकला त्रिपाठी

नाटकों का निर्देशन और अभिनय भी। अकादमिक क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण समितियों की सदस्य

शुकदेव सिंह स्मृति सम्मान गाथांतर सम्मान सुचरिता गुप्ता अकादमी सम्मान



किताबें : कविता संग्रह - वसंत के चुपचाप गुजर जाने पर , नेशनल पब्लिशिंग हाउस नई दिल्ली

शायद किसी दिन , नमन प्रकाशन नई दिल्ली

कथा डायरी ,इस उस मोड़ पर अंतिका प्रकाशन

आलोचना , अज्ञेय और नई कविता 

आलेख कविताएं कहानियां , हंस कथा देश पूर्वग्रह,वागर्थ , रचना समय आलोचना, वसुधा, पल प्रतिपल वगैरह में

दूरदर्शन, आकाशवाणी के दिल्ली लखनऊ गोरखपुर वाराणसी इलाहाबाद केंद्रों से वार्ताएं साक्षात्कार वगैरह प्रसारित

यूजीसी कैरियर अवार्ड प्राप्त

42 वर्ष बीएचयू में अध्यापन और महिला महाविद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचार्या पद से रिटाय-

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