बुधवार, 16 मार्च 2022

समकाल : कविता का स्त्रीकाल -34





आरती की कविताएँ


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(1)

में फिर से भेड़ बकरी बनाओ


नहीं सीखना हमें दो और दो का जोड़ घटाना
नहीं पढ़ना विज्ञान भूगोल की पोथियां 
इतिहास की मक्कारियां समझकर क्या कर लेंगे 
और राजनीति तुम्हारी तुम्हें ही मुबारक

हम वहीं धान कूटेगे 
चक्की पीसेगे 
 घूंघट काढकर मुंह अंधेरे दिशा फराक हो आएंगे
और पीटे जाने पर बुक्का फाड़कर रो लेंगे


हम हाथ जोड़कर सत्यनारायण की कथा सुनेंगे 

और लीला कलावती लीलावती की तरह परदेस कमाने 

या ऐश करने गए सेठ का 

जीवन भर इंतजार करेंगे


हम एनीमिक होंगे तब भी करेंगे निर्जला उपवास 

करवा चौथ तीजा की कथा सुनकर हर साल डरेंगे 

अपनी थाली की दाल सब्जी पति पुत्रों को मनुहार कर कर खिलाएंगे 

मरते दम तक पैदा करेंगे मनु के साम्राज्य को बढ़ाने वाली जमातो को 

और अगले जन्म फिर से वही घर वर पाने की कामना करेंगे


इहलोक उहलोक के हिसाब से सब मैनेज कर लेंगे 

किटी पार्टी वीसी फेसबुक व्हाट्सएप संभाल लेंगे 


हम अपने मन के भीतर खुलने वाला दरवाजा

बंद कर उस पर ताला जड़ देंगे 

कोई दस्तक नहीं सुनेंगे 

कान बंद कर लेंगे 

होंठ सिल लेंगे 


आओ तालीबुडिया बॉलीवुडिया भोजपुरिया फिल्में आओ 

एकता कपूर की मामी मौसियो भाभियों सासों ननदो आओ 

पुराने को नए तहजीब में रंगकर लाओ 

हमें एक बार फिर से भेड़  बनाओ।
[03/03, 10:50] सोनी पाण्डेय: मैसेंजर मां और बेटा
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मैं लिखना चाहती थी
कि तुम्हारी याद आती है 
और लिखा- क्या कर रहे हो अभी जाग गए?
या सो रहे हो?
अच्छा... जाग गए
कॉफी बना पी लो ताकि नींद अच्छी तरह खुल जाए

आज मैं तुम्हें बहुत मिस कर रही हूं ..लिखना चाहती थी
और लिखा
वही रोज रूटीन का
जैसे हर माह भेजी जाने वाली  राशि 
चेतावनी और डांट फटकार

आज फिर सुबह से ही हिम्मत की और
लिखना चाहा-
जल्दी आ जाओ...  
और 
लिख दिया
यहां बारिश शुरू हो गई है 
वहां का मौसम कैसा है?


हमें फिर से भेड़ बकरी बनाओ
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नहीं सीखना हमें दो और दो का जोड़ घटाना
नहीं पढ़ना विज्ञान भूगोल की पोथियां 
इतिहास की मक्कारियां समझकर क्या कर लेंगे 
और राजनीति तुम्हारी तुम्हें ही मुबारक

हम वहीं धान कूटेगे 
चक्की पीसेगे 
घूंघट काढकर मुंह अंधेरे दिशा फराक हो आएंगे
और पीटे जाने पर बुक्का फाड़कर रो लेंगे

हम हाथ जोड़कर सत्यनारायण की कथा सुनेंगे 
और लीला कलावती लीलावती की तरह परदेस कमाने 
या ऐश करने गए सेठ का 
जीवन भर इंतजार करेंगे

हम एनीमिक होंगे तब भी करेंगे निर्जला उपवास 
करवा चौथ तीजा की कथा सुनकर हर साल डरेंगे 
अपनी थाली की दाल सब्जी पति पुत्रों को मनुहार कर कर खिलाएंगे 
मरते दम तक पैदा करेंगे मनु के साम्राज्य को बढ़ाने वाली जमातो को 
और अगले जन्म फिर से वही घर वर पाने की कामना करेंगे

इहलोक उहलोक के हिसाब से सब मैनेज कर लेंगे 
किटी पार्टी वीसी फेसबुक व्हाट्सएप संभाल लेंगे 

हम अपने मन के भीतर खुलने वाला दरवाजा
बंद कर उस पर ताला जड़ देंगे 
कोई दस्तक नहीं सुनेंगे 
कान बंद कर लेंगे 
होंठ सिल लेंगे 


आओ तालीबुडिया बॉलीवुडिया भोजपुरिया फिल्में आओ 
एकता कपूर की मामी मौसियो भाभियों सासों ननदो आओ 
पुराने को नए तहजीब में रंगकर लाओ 
हमें एक बार फिर से भेड़  बनाओ।
[03/03, 10:50] सोनी पाण्डेय: एक देह को खाक में बदलता देख कर लौटी हूं
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पहली बार, एक जलती चिता को देखकर लौट रही हूं वह एक औरत की चिता थी 
उसकी देह को खाक में बदलता देखकर लौट रही हूं 

शून्य से अनंत भार में बदल चुके पैरों को घसीटती 
घर की सीढ़ियां चढ़े जा रही 
आंखों की पुतलियां एक बड़ी स्क्रीन में तब्दील होकर दृश्य को रंग, गंध,ध्वनि के साथ बार-बार दोहराए जा रही 

सुनहरे बॉर्डर की हरे साउथ कॉटन साड़ी में लिपटी देह लकड़ियों के बीच दबा दी गई 
जब पहली लौ ने उठकर अंगड़ाई ली 
मैं चीख मारकर रोना चाहती थी लेकिन कसकर दबा दिया अपनी रुलाई का गला 
कि अभी सब चिल्ला उठेंगे - इसलिए औरतों को मनाही है 

हां औरतों को मनाही होती है बहुत सी चीजों की 
और यदा-कदा मिली हुई आजादियों को जीने का शऊर भी नहीं होता उनके पास 
जैसे उनके पास समय हो तो भी वे अपने मन का कुछ भी नहीं करना चाहती 
उन्हें हर दिन ऑफिस से जल्दी पहुंचना होता है घर छुट्टी का दिन तो और भी व्यस्त होता है
एक दिन वे थोड़ा सा समय निकालकर दिल में दबा हुआ नासूर कहने अजीज दोस्त के पास जाती हैं और चाय के घूंट घूंट के साथ होंठों के कोर तक आया हुआ अनकहा फिर से पी जाती है

वह औरत जब तक जिंदा रही फुर्सत के कुछ घंटे कभी नहीं निकले उसके बटुए से 
कि उसके और मेरे पास व्यस्तता के हजार बहाने थे
हम कहते रहे कि हम जल्द मिलेंगे... जल्द मिलेंगे 
और एक दिन सुबह एक मैसेज आता है.... तब मुझे कोई काम याद नहीं आता 
मैं सीधे दौड़कर उस जगह पहुंच चुकी होती हूं 
जहां वह औरत नहीं होती बाकी सब कुछ होता है 
घर होता है, लोग होते हैं और होती है उसकी देह

यह कैसी विडंबना है
वह औरत मेरी इतनी घनिष्ठ तो ना थी कि महीनों बाद भी मेरी रात उसकी स्मृतियों का घरौंदा बन जाए

हां मैं हर रात उस औरत की देह में कायांतरित हो जाती हूं 
मेरी छाती, मेरी जंघायें, मेरी पिंडलियां, तलवे लकड़ियों के ढेर के नीचे दबे जा रहे 
वह देखो! कोई मेरी ओर जलती लुकाठी फेंकने ही वाला है।



स्त्रियां किस देश के नागरिक हैं
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वे जिन्हें एक घर से दूसरे घर की ओर हांक दिया गया था 
वे जिनके नाम किसी घर के बाहर वाली नेमप्लेट में दर्ज नहीं है 
वे जिनके मालिकाना हक में नहीं आते खेत मकान बाग चौगान 
वे जो अपने गहनों कपड़ों के गुम हो जाने पर अपराधी की तरह 
घर की अदालत में खड़ी कर दी जाती हैं 
वे स्त्रियां किस देश के नागरिक हैं? 

वे जिनके घर किसी अंधड़ ने नहीं उजाड़ी
किसी नदी ने नहीं डुबोया उनका गांव 
ऐसा होता तो दर्ज होते उनके नाम किसी ना किसी सरकारी रजिस्टर में 
वे सब बिना घर गांव वाली स्त्रियां बताओ किस देश के नागरिक हैं ?

वे जिन्हें अपने जन्मदिन का "ज" भी नहीं पता 
वे जब जन्मी तो नहीं बने पकवान 
सोहर नहीं गए, ना ही सामूहिक नाच हुए 
उन्होंने एक दिन जिद की और पूछा कि वह कब पैदा हुई थी 
तो वही जवाब मिला कि शाम के बाद जब रात गहरा रही थी 
और उन उल्लूओ ने बोलना शुरू किया था 
लड़कियां तभी पैदा होती हैं 
बताओ तो भला यह स्त्रियां किस देश के नागरिक हैं? 

जैसे वे नरकासुर के घर रही वैसे ही कृष्ण तुम्हारे घर भी रही 
जैसे चंद्रगुप्त के वैसे अशोक के 
जैसे बाबर के वैसे अकबर के 
किसी झोपड़ी किसी महल किसी मंदिर 
किसी मस्जिद के बाहर नहीं खुदे उनके नाम के अक्षर 
बेटों के नाम के साथ भी दर्ज नहीं हुए माओं के नाम  स्कूल के रजिस्टर में बताओ आदि से लेकर आधुनिक तक यह सभी स्त्रियां 
किस देश के नागरिक हैं ?

यह स्त्रियां पेड़ हैं खेत हैं खजाने हैं जहां कब्ज़ा किया गया 
यह सत्ता और सिंहासन हैं जिनके लिए युद्ध लड़े गए 
समय ने करवट बदली और दुनिया राजसत्ता की कैद से मुक्त हो 
लोकसत्ता के नियमों से चलने लगी और 
यह अभी भी खाना बनाने वाली, झाड़ू पोछा लगाने वाली 
और बिस्तर पर खुद बिक जाने वाली हैं

वह जो दो चार या पचास या सैकड़ा भर नहीं 
हजार लाख और कई करोड़ हैं 
कई सौ करोड़ हैं 
वह पूरी दुनिया पर एक बटे दो फैली हुई हैं
फिर भी उनके पास किसी देश की नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं है 

बताओ आज इस बीसवीं 21वीं सदी में खड़े होकर 
यह सभी स्त्रियां किस देश के नागरिक हैं?

रामराज की तैयारी का पूर्व रंग 
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प्रश्न पूछने वालों को बेंच के ऊपर हाथ उठाकर खड़ा कर दिया जाएगा 
मुंडी हिलाने वालों को मुर्गा बनाया जाएगा और
बात-बात पर तर्क करने वालों को क्लास से बाहर धकेल दिया जाएगा

प्रहसन की तैयारी से पहले मास्टर जी ने 
यह बात तीन बार बताई 
रामराज आने वाला है और यह सब 
उसी की तैयारी का पूर्वरंग है 

अभी राम को अयोध्या के राजा ने अर्थात उनके पिता ने वनवास दिया है और स्वामी की आज्ञा के आगे कोई भी न्याय वगैरे की बात नहीं करेगा 
राम ने भी नहीं की थी ना ही किसी देशवासी ने 
राजा प्रजा का स्वामी होता है 
यह बात भी मास्टर जी ने तीन बार  बताई

दूसरे हिस्से में युद्धाभ्यास चल रहा है 
अस्त्र शस्त्रों के नाम से लेकर तकनीकी की भी जानकारी दी जा रही है 
और यह भी कि राम के साथ धनुष बाण हमेशा होना जरूरी है 
जैसा की फोटो में होता है 

अब राम राजा नहीं है फिर भी सेना बनाने में जुटे हैं 
राम राज्य लाने की प्रक्रिया में में युद्ध बहुत जरूरी है 
इसीलिए जंगल में राम ने पहले भीलो किरातों से 
फिर वानर भालूओ से दोस्ती बनाई 
सुग्रीम की जरूरत पहचान कर उसे राजा बनाने में मदद की 
और इस तरह दोस्ती के भीतर दाससत्व के नए रिश्ते का इजाद किया 
रामराज लाने से संबंधित तमाम प्रोपेगंडा संभालने का काम 
हनुमान के मत्थे सौंपा गया 

हां एक बात याद आई युद्ध में औरतों का क्या काम 
इसलिए सारी लड़कियां क्लास से बाहर चली जाए और 
वीरों की आरती उतारने का अभ्यास करें 
यह बात भी मास्टर जी ने तीन बार बताई 

आगे मास्टर जी ने सोने के हिरण वाली बात बताई 
राम ने शबरी के जूठे बेर को कितने प्रेम से खाया, यह भी बताया 
उन्होंने मारीच से लेकर बाली कुंभकरण और 
रावण वध की कथा सविस्तार बताई और तीन तीन बार बताई 

उन्होंने यह भी बताया कि रावण बड़ा विद्वान था और 
राम विद्वता का बड़ा सम्मान करते थे 
अतः उन्होंने लक्ष्मण को रावण के पास राजनीति सीखने भेजा 
मास्टर जी ने यह नहीं बताया कि जब लक्ष्मण को राजा बनना ही नहीं था 
तो कायदे से राजनीति सीखने राम को जाना चाहिए था 

नहीं बताया मास्टर जी ने राम के दुखों और छोटे-छोटे सुखों के बारे में 
कि रात के किस पहर अचानक सीता की याद में घंटों रोए थे 
कि उन्हें मां की याद कब-कब आई
कि पिता की मृत्यु की खबर राम ने कैसे सहन की
उन्होंने यह सब एक बार भी नहीं बताया की अग्नि परीक्षा लेते हुए 
राम कितने आदर्श बचे थे? 
कि गर्भवती पत्नी को बनवास देते हुए राम को अपने होने वाले बच्चे का बिल्कुल भी ख्याल नहीं आया?

सच तो यह है कि राम को राजा ही बनना था 
चौदह साल बाद ही सही 
रावण हमेशा राम की छवि चमकाने के काम आया 

सच तो यह है कि राजा किसी का सगा नहीं होता 
ना पिता का ना पत्नी का ना पुत्र का 
यहां तक कि उस ईश्वर का भी नहीं 
जिसकी ढाल वह हमेशा अपने साथ रखता है





- एक ऋचा का पुनर्पाठ -1
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चिता से उठती चीखों की आवाज़ें  सुन सुनकर 
आखिर एक दिन उनके कान संवेदना से पसीज उठे 
और उन्होंने देवभाषा में कहा-

 ओ स्त्री उठ! 
जिसकी बगल में तू लेटी है वह कब का मर चुका         
उठ जीवितो के संसार में वापस चल 
   

वह अहसान से दोहरी तिहरी हो वापस आई 
वह वापस आई देवर के लिए 
वह वापस आई पुरोहित के लिए 
वह वापस आई किसी ना किसी पुरुष के लिए 

उन्होंने जब-जब कहा वह हंसी, रोई 
और गीत गाने लगी 
उन्होंने इशारे किए जब, वह मर गई 
जहर खा, फांसी लगा, बच्चे जनकर और 
आग में कूद कर भी 

इस तरह वह जीवितों कि दुनिया में जिंदा रही 
इस तरह वह फिर फिर मरी जीवितों की दुनिया में...

2-एक और ऋचा का पुनर्पाठ -2
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सबने अक्षत और फूल लेकर हाथ जोड़े 
सबने यानी स्त्रियों ने भी 

उन्होंने दूसरी ऋचा का पाठ शुरू किया -
'ओ स्त्री तुम पर भरोसा नहीं किया जा सकता 
तुम्हारा मन भेड़िए का मन है' 

सामने बैठी स्त्रियों की देह जड़ हो गई और 
उनके चेहरे पर भेड़िए सरीखे पैने दांत उग आए

पिताओं ने उनकी ओर हिकारत भरी नजरों से देखा 
और उनकी पकाई रोटियां कुछ भुनभुनाते हुए खाते रहे

बच्चे आए, वे उनके दांतों को छूकर, हिलाकर  
ठोंक बजाकर देखते और ठहाके लगाते रहे 

आखिर में रात के दूसरे पहर पुरुष आए 
सबसे पहले उन्होंने उनके नुकीले दांत तोड़े 
फिर शरीर का मांस तोला तोला कर पकाया-खाया 
वे डकार आने तक खाते रहे 

इस तरह एक भेड़िए के मनवाली का यह संस्कार 
सुबह के पहर तक चलता रहा.


अच्छी लड़की के लिए जरूरी निबंध
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एक अच्छी लड़की सवाल नहीं करती
एक अच्छी लड़की सवालों के जवाब सही-सही देती है
एक अच्छी लड़की ऐसा कुछ भी नहीं करती कि सवाल पैदा हों

मेरे नन्ना कहते थे- लड़कियां खुद एक सवाल हैं जिन्हें जल्दी से जल्दी हल कर देना चाहिए
दादी कहती- पटर पटर सवाल मत किया करो

तो यह तो हुई प्रस्तावना अब आगे हम जानेंगे
कि कौन सी लड़कियां अच्छी लड़कियां नहीं होती

एक लड़की किसी दिन देर से घर लौटती है
वह अच्छी लड़की नहीं रहती
एक लड़की अक्सर पड़ोसियों को बालकनी पर नजर आने लगती है….. वह अच्छी लड़की नहीं रहती
एक लड़की का अपहरण हो जाता है एक दिन
एक लड़की का बलात्कार हो जाता है और उसकी लाश किसी नदी नाले या जंगल में पाई जाती है
एक लड़की के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जाता है
और एक लड़की तो खुदकुशी कर लेती है…

क्यों -कैसे?
जानने की क्या जरूरत
यह सब अच्छी लड़कियां नहीं होती

मैं दादी से पूछती -अच्छे लड़के कैसे होते हैं
वह कहती – चुप ! लड़के सिर्फ लड़के होते हैं

और वह शुरू हो जाती अच्छी लड़कियों के
गुण बखान करने
दादी की नजरों में प्रेम में घर छोड़कर भागी हुई लड़कियां केवल बुरी लड़कियां ही नहीं
नकटी कलंकिनी कुलबोरन होती
शराब और सिगरेट पीने वाली लड़कियां दादी के देश की सीमा के बाहर की फिरंगनें कहलाती थीं
और वे कभी भी अच्छी लड़कियां नहीं हो सकतीं

खैर अब दादी परलोक सिधार गई और नन्ना भी नहीं रहे
फिर भी अच्छी लड़कियां बनाने वाली फैक्ट्रियां
बराबर काम कर रही हैं
और लड़कियों में अब भी अच्छी लड़की वाला ठप्पा अपने माथे पर लगाने की होड़ लगी है

तो लड़कियों! अच्छी लड़की बनने के फायदे तो पता ही है तुम्हें 
चारों शांति और शांति…..
घर से लेकर मोहल्ले तक
स्कूल कॉलेज शहर और देशभर में
ये तख्तियां लेकर नारे लगाना जुलूस निकालना
अच्छी लड़कियों के काम नहीं है
धरना प्रदर्शन कभी भी अच्छी लड़कियां नहीं करतीं

मेरे देश की लड़कियों सुनो!
अच्छी लड़कियां सवाल नहीं करती और
बहस तो बिल्कुल भी नहीं करती
तुम सवाल नहीं करोगी तो हमारे विश्वविद्यालय तुम्हें गोल्ड मेडल देंगे
जैसा कि तुमने सुना जाना होगा इस विषय पर डिग्री और डिप्लोमा भी शुरू हो गया है
इन उच्च शिक्षित लड़कियों को देश-विदेश की कंपनियां अच्छे पैकेज वाली नौकरियां भी देती हैं

देखो दादी और नन्ना अब दो व्यक्ति नहीं रहे
संस्थान बन गए हैं

खैर आखरी पैराग्राफ से पहले एक राज की बात बताती हूं
कुछ साल पहले तक मैं भी अच्छी लड़की थी.







आरती

 24 अक्तूबर 1977 ।

रीवा, म प्र के एक कस्बे गोविन्दगढ में जन्म। 

हिंदी- साहित्य से एम. ए. और पी एच. डी.। 


मीडिया में दसों साल सक्रिय कार्य के बाद अब स्वतंत्र लेखन और सामाजिक कार्य। " समय के साखी"  साहित्य पत्रिका का  सम्पादन।

प्रकाशन- "मायालोक से बाहर" ( कविता संग्रह)

"नरेश सक्सेना का व्यक्तित्व और कृतित्व" पुस्तक का सम्पादन

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की " मीडिया मीमांसा" और "मीडिया नव चिंतन" पत्रिकाओ के कई अंको का सम्पादन। 

रबिन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल के बृहत् कथा कोश कथादेश का संपादन।

सम्पर्क- 912 अन्नपूर्णा परिसर, पी एन टी चौराहा, भोपाल( म प्र)

मो न- 9713035330
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