जोशना बैनर्जी आडवानी ने इधर तेजी से अपनी कविताओं के माध्यम से ध्यान खींचा है।कथक नृत्यांगना जोशना थिएटर और शिक्षण कार्य से जुडी होने के नाते अनुभव के व्यापक फलक पर कविता के शब्द चित्र खींचती अपने काव्य भाषा के सम्मोहन से हमें बाँध लेती हैं।उनकी कविताओं का बिंब विधान अनूठा है,एक कविता में वह लिखती हैं-
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तुम खून सुखाते पाप के लिए ईश्वर
द्वारा रचा गया वरदान हो
मैं पकड़ी गई मछली की जाती
हुई सांस हूँ
तुम ठप्प पड़े कारोबार की आखिरी
आस भरी उम्मीद हो
मैं गलतफहमी मे जीने वाली
असलियत का कलंक हूँ
तुम पहली मिलन की रात का
घबराया हुआ लम्हा हो
मैं उसी रात का मुरझाया हुआ
सुबह का फ़ूल हूँ
तुम इतना जो बंद बंद रहते हो मुझसे
निश्चित ही मृत्यु के बाद मेरी आँखें खुली रह जायेंगी"
उपरोक्त कविता में मूलतः स्त्री -पुरुष असामानता की बात ही व्यक्त है पर कहन की शैली बिल्कुल टटका बिम्बों पर केन्द्रित कविता को सहज प्रवाह में बाँधती हमें सार तत्व तक ले जाती हैं।इस तरह के प्रयोग और बांग्ला भाषा और संस्कृति के गन्ध से भरी जोशना स्त्री कविता की उस पीढी का प्रतिनिधित्व करती हैं जो समय और समाज के हर मोर्चे पर अपनी कविता से सवाल-जवाब को तत्पर है।
1मृत्यु के बाद मेरी आँखें खुली रह जायेंगी ....तुम पुराने दिनो के गज़ल से निकलाचुभने वाला दर्द होमैं हूँ रियाज़ से पहले की गईउस्ताद की गरारीतुम हो उस पवित्र ढाई अक्षर कासबसे ऊँचा वाला कुलाँचमैं हूँ सफेद चाँद का सबसे बदसूरतकाला गहरा गड्ढातुम कई त्वचाओं के पीछे छिपानवसंचार होमैं चिथड़े से बनाया गया खुरदराबिस्तर हूँतुम खून सुखाते पाप के लिए ईश्वरद्वारा रचा गया वरदान होमैं पकड़ी गई मछली की जातीहुई सांस हूँतुम ठप्प पड़े कारोबार की आखिरीआस भरी उम्मीद होमैं गलतफहमी मे जीने वालीअसलियत का कलंक हूँतुम पहली मिलन की रात काघबराया हुआ लम्हा होमैं उसी रात का मुरझाया हुआसुबह का फ़ूल हूँतुम इतना जो बंद बंद रहते हो मुझसेनिश्चित ही मृत्यु के बाद मेरी आँखें खुली रह जायेंगी2कविता हलक से ठाँय करती हुई उड़ जायेगी एक दिन ....उसने अँधेरे से घुप्प लियासड़कों से सीख ली भिड़ंत की हड़बड़ीपानी से ले लिया भापबुतों से छीना वधस्थानो़ का इतिहासगुम्बदों से जाना चिड़ियों का विवेकबिगुल से सीखती रही अभिनय के नुस्खेंकर्फ्यू से ले ली मूर्खों की उक्तियाँइतना कुछ पाने के बावजूद भीदेश जब थर्रा रहा थाउसे अभिनय की सूझीपिछले दिनों रंगमंच में एक चालाकलड़की का किरदार करते हुएवह गच्चा खा गईन्यायार्थ ही दर्शकों को अपने अभिनयसे दण्डित कियाएकांत में कविता लिखीवह बंदूक से नहीं मरेगीकविता हलक से ठाँय करती हुईएक दिन उड़ जाने का अभिनय करेगी3मेरे जीवन के रंगमंच केतुतलाते हुये अभिनेता ....दर्शक तर्रार हैं,बड़े बड़े बल्ब नाटकीयऔर रंगमंच की ज़मीनमेरी आत्मा हैतुम अपने पाँव अच्छे से जमा लेनाकभी अटको तोअपने दायीं तरफ के परदे कीतरफ देखनामैने अपने प्रेम की कुछ चित्रलिपियाँचिपकाई है वहाँअपने कंठ मे भर लेना अभिनयतालियों की गड़गड़ाहट रख लेना तुमऔर मुझे दे देना उनकी गूँजये मेरे कानो को लम्बा जीवन देंगेस्मरण रहेरंगमंच पर अभिनय की भूमिका ने लोगों को अमर किया हैरंगमंच के बाहर अभिनय की भूमिका ने सैकड़ो शिशुओं कोझूठ और फूहड़ता नामक दो पिताओं से जना हैहम कभी कोई शिशु संभाल पायेइतने बड़े कभी हम बन नही पायेंगेचित्र-अनुप्रिया4तुम्हारी कविताएँ अगर कोईदेश होती तो ....तुम्हारी कविताएँ अगर कोई देशहोती तो वहाँ यात्रा करते वक्तदेखी जा सकेगीबाघो और बकरियों मे सुलहबाज़ारों मे बिकते शीरमालको देख झाड़ देंगेलोग अपनी थकानबच्चो की हँसी तय करेगीनक्षत्रों की गतिफूलों की घाटियाँ अपनी आयुदेंगी प्रेमियों कोतुम्हारी कविताऐंअगर कोई देश होती तोमैं होती वहाँ की पहली नागरिकपरंतुकोई आश्चर्य नहींं जो मेरी उचटीहुई नींद से छिटक कर दूर जागिरो तुम और रात माँगे मुझसेमेरे होने का हिसाबकोई आश्चर्य नहींं जो किसी दिनमैं सिकुड़कर बन जाऊँ एकईल मछली और दुःखो के एवज़ मेंंझटकोंं का करूँँ इस्तेमालकोई आश्चर्य नहींं जोशास्त्रार्थ की ज्ञाता विद्योतमा कोकरना पड़ा था अनपढ़ कालिदास से विवाहविचेष्ट मन की विचेष्ट स्वप्नों से छिटककर ही मैंनेपाया है जीवनतुम्हारी कवितिओं की माधवीलता पकड़करउठ रही हूँ ऊपर की ओरतुम्हारी कविताओं ने मुझे विधात्री बनाया5पच्चीसवें घंटे का टोटका ....क्या सीखा तुमनेएक लौटे हुये पतझड़ सेएक इंतज़ार मे बैठी लड़की सेइकट्ठी रखी शिकायतों सेऊँघती हुई सरहदी मिट्टी सेक्या सीख पाओगे तुमबूढ़े नाविकों से समुद्र के साम्राज्य की बारिकियाँउस कविता से जिसे एक असफल प्रेमकथा ने जनागिरे हुये फ़ूलो से डालियों के पकड़ की प्रक्रियाउस ऋण से जो अनुत्तरित प्रश्नो से दुगना हो रहा हैक्या सबकुछ सीख कर भी सिखा पाओगेचिड़ियों को चिड़ीमारो का रहस्यमयी मनोविज्ञानप्रेमियों को प्रेमगीत लिखवाकर ग्रैमी जीतने का नुस्ख़ाईश्वर के प्रैस्क्रिप्शन पर कैसे लिखी जाती है चन्द सांसेएक बेहद सरफिरी लड़की को पच्चीसवें घंटे का टोटकापरिचयजोशना बैनर्जी आडवानीस्प्रिंगडेल मॉर्डन पब्लिक स्कूल में प्रधानाचार्या पद पर कार्यरतजन्म- आगरा, उत्तर प्रदेशजन्म तिथि- 31 दिसम्बर, 1983शिक्षा- सेंट कॉनरेड्स इंटर कॉलेज से स्कूलिंग की,आगरा कॉलेज से ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद सेंट जॉन्स डिग्री कॉलेज से बी.एड और एम.एड किया,आगरा विश्वविद्यालय से पी.एचडी की तथा पंद्रह साल पी.जी.टी. लेवल पर अंग्रेज़ी पढ़ाने के बाद प्रधानाचार्या का पद संभाला ।सीबीएसई की किताबों के लिए संपादन कार्यसीबीएसई के वर्कशॉप्स और सेमिनार्स संचालित करवाने का कार्य पिछले दस सालों सेकत्थक में प्रभाकरलिखने में रूचि बचपन से ही थीअंग्रेज़ी और हिंदी में कई कविताएँ लिखीपर पहचान मिली पहली पुस्तक "सुधानपूर्णा" से जो दीपक अरोड़ा स्मृति सम्मान के तहत बोधि प्रकाशन से आई थीसुधानपूर्णा का अर्थ किसी शब्दकोश में नहींपिता का नाम - स्वर्गीय सुधानबाबू बैनर्जीमाँ का नाम- स्वर्गीय अन्नपूर्णा बैनर्जीपिता के नाम से सुधान और माँ के नाम से पूर्णा लेकरसुधानपूर्णा नाम रखा किताब कापूर्व में थियेटर किया कई सालों तक।
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