रविवार, 25 दिसंबर 2022

एक प्रतिबद्धता थी कि न ई कलम को गाथांतर का मंच जरुर मिले।सामने विशाल साहित्य जगत है जिसमें से निरन्तर कुछ उम्मीदें तलाशती रही हूँ।उसी क्रम में प्रतिभा का नाम आता है।पेशे से शिक्षिका प्रतिभा की एक लघु कथा आज गाथांतर ब्लाग पर प्रस्तुत है

' फर्क ' -

------एक लघुकथा

सुबह कामवाली माधुरी देर से आई और आते ही सिर झुका के बर्तन साफ करने लगी । उसके ब्लाउज के बाहर ,पीठ पर लाल चकत्ते उभरे देखकर रागिनी उससे पूछ बैठी । "माधुरी , ! क्या आज फिर मारा तुम्हारे आदमी ने "??? माधुरी सिर झुकाये ही बोली , "हाँ बीबी जी , दारू के नशे में बौरा जाता है , और फिर ना मुझे पहचानता है और ना बच्चों को ", अपनी फ़टी हुई साड़ी के पल्लू को हटा कर चोट के लाल काले निशान दिखने लगी वह। "माधुरी कितनी बार तुझसे कहा है कि , जब वह तुझ पर हाथ उठाये तो हाथ में जो भी आये खींचकर तू भी मार "। नहीं मार पाती तो उस आदमी की रिपोर्ट कर दे , चार दिन थाने में बन्द रहेगा और पुलिस का डंडा पड़ेगा तब सारी अक्ल ठिकाने आ जायेगी "। "बीवी जी मर्द है मेरा ...! जैसा भी है मेरा और बच्चों का पेट तो भर रहा है ।जेल चला जायेगा तो मेरे छोटे छोटे बच्चे भूखे मर जायेंगे। बिन मर्द की लुगाई पूरे गाँव की भौजाई होती है बीवीजी"। "तू बनी रह पति व्रता । और ऐसे ही मार खाना जीवन भर । तुम 'छोटी औरतें ' अपने लिए लड़ना ही नहीं जानती ।तुम्हारी नियति में बस पीटा जाना ही लिखा है । हुंह ...!" "जिस दिन उसे छोड़ दूँगी पूरी दुनिया मुझे ठोकर मारेगी बीवीजी। 'सड़क का पत्थर बनने से , आँगन का पत्थर बन कर रहना बेहतर होता है ना बीवीजी '।" माधुरी दार्शनिक की भांति बोली। ****** आजकल रागिनी के पति मिस्टर महेश अक्सर देर से आते हैं ।कभी कभी नशे में धुत और बाहर खाना भी खाकर आने लगे थे । आज भी उन्हें आने में देर हो गयी । "मैं खाना खाकर आया हूँ रागिनी "। महेश घर में घुसते ही बोले। " यदि आपको खाना बाहर ही खाना रहता है तो कम से कम एक कॉल तो कर देते "। "आज फिर इतनी ज्यादा शराब पी है आपने ?? अपना नहीं तो बेटू का ख्याल किया करिये वह बड़ा हो रहा है ।आपको इस हाल में देखकर उस पर गलत असर पड़ता है "। रागिनी आवाज थोड़ी ऊँची करके बोली। "व्हाई यू आर सो एंग्री डार्लिंग .? यू नो आई एम् अ बिजनेस मैन ।और बिजनेस में इतना चलता है जान ।" महेश , रागिनी को बाँहों में भरकर उसके होंठो पर होंठ रखते हुए बोले । शराब का एक तेज भभूका रागिनी की नाक से टकराया ।उसे उबकाई आने लगी ।उसने महेश को तेजी से परे हटाया जिससे महेश लड़खड़ाते हुए बेड पर गिरे और उनका सिर बेड के सिरहाने से टकरा गया । "यू बिच ..!! साली मुझ पर हाथ उठाती है । मैं खिलाता हूँ , पहनता हूँ , ये आलिशान बंगला , गाड़ी , सब मेरी कमाई से है ।" महेश ने उसकी गर्दन पर अपने नाखून गड़ा दिए । रागिनी गिड़गिड़ाई "महेश छोडो दर्द हो रहा है "। "हरामजादी ..! तेरी महंगी साड़ियां और ये ब्रांडेड लिपस्टिक मेरे पैसों की है ।" महेश उसके होंठो को अंगूठे से रगड़ते हुए बोला । वह बड़बड़ाये जा रहा था । "दो कौड़ी की लौंडी तेरे जैसी सैकड़ों रख सकता हूँ मैं ।तू आजकल बहुत उड़ने लगी है, आज तुझे बताता हूँ दर्द क्या होता है ।" यह कहते हुये महेश ने अपनी बेल्ट निकाली और रागिनी को जमीन पर गिरा कर पीटने लगा। रागिनी गिड़गिड़ाती रही , लेकिन नशे में डूबे महेश ने उसे तब तक पीटा जब तक वह थक नहीं गया । आज रागिनी का उच्च शिक्षित , बड़े घर की बेटी, बहू , होने का दर्प चूर चूर हो गया। उसकी सोच के दायरे में उसमें और माधुरी के बीच की औरत का 'फर्क 'समाप्त हो गया था ।। ******

प्रतिभा श्रीवास्तव
आज़मगढ़

3 टिप्‍पणियां:

  1. पुरुष-सत्ता के रु-ब-रु स्त्री की प्रतिक्रिया में कथनी और करनी के फर्क पर एक सटीक व्यंग्य। अच्छी लघुकथा।

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  2. पुरुष-सत्ता के रु-ब-रु स्त्री की प्रतिक्रिया में कथनी और करनी के फर्क पर एक सटीक व्यंग्य। अच्छी लघुकथा।

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  3. गाथांतर से उम्मीद है: चंद्रकला त्रिपाठी

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