रविवार, 25 दिसंबर 2022

कहानी

                                                            मित्रता



चंद्रकला त्रिपाठी


 भूगोल विषय की कक्षा में अध्यापक के प्रवेश करते ही विनय उठ कर कक्षा के बाहर जाने को उद्यत हुआ। विनय सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था। बहुत मेधावी था वह। कक्षा में हमेशा आगे की पंक्ति में बैठता।आज भी वहीं बैठा था इसलिए उसे उठ कर जाते हुए पूरी कक्षा ने देख लिया था।
 आज भी कई सहपाठियों के चेहरे पर उसके लिए व्यंग्य पूर्ण मुस्कान थी। मगर नवल उदास था। वह असहायता पूर्वक विनय को सिर झुकाए कक्षा से बाहर जाते देखता रहा।विनय का कातर और फीका पड़ा सा मुंह उसके भीतर एक रुलाई जैसी पैदा कर रहा था।वे गहरे मित्र थे।साथ खेलते और  स्कूल बस से साथ ही आते जाते थे।विनय के कारण ही वह जिले में शतरंज का सर्वोत्तम खिलाड़ी बना था। उसके लिए ही विनय ने प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया था।नवल को याद है कि उसके प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए ज़िद करने पर विनय ने हंस कर कहा था कि तब तो उसे हार जाना पड़ेगा क्योंकि वह नवल को चैंपियन बनते देखना चाहता है।
 ऐसा क्या हो गया है कि विनय अब उससे दूर दूर रहता है। उसकी तरफ उदास सा देखता है और किसी और तरफ देखने लगता है।
 उसने तो पूछा भी था।
 वह कुछ नहीं हुआ है ऐसा कह कर टाल गया था।
 इन दिनों उसके पास किताबें नहीं होती हैं। अभ्यास पुस्तिकाएं भी नहीं होती हैं। भूगोल विषय के अध्यापक बहुत ही अनुशासन प्रिय हैं। उन्हें कक्षा में पुस्तकें न लेकर आने वाले विद्यार्थी लापरवाह लगते हैं। पिछले दिनों उन्होंने विनय को सचेत किया था कि अगर वह किताबें लेकर नहीं आएगा तो इसे वे उसकी उद्दंडता समझेंगे।तब उसे कक्षा में आने की आवश्यकता नहीं है।

 उन्होंने विनय को कक्षा के बाहर जाते देखकर कहा कि इसका अर्थ विनय की अनुशासन हीनता है और अब उन्हें प्रधानाध्यापक से उसकी शिकायत करनी पड़ेगी।
 विनय ठिठक गया था।
 उन्हें देख उठा था वह।
 पूरी कक्षा यह देखकर स्तब्ध हो गई।
 नवल का उस दिन क्लास में मन नहीं लगा।
 वह सोचता रहा कि क्या उसने सचमुच यह जानने का प्रयत्न किया है कि विनय ऐसा क्यों कर रहा है।वह बहुत अमीर नहीं है मगर इस अच्छे स्कूल में अपनी प्रतिभा के कारण उसे दाखिला मिला है। उसके अंक हमेशा सबसे अच्छे आते रहे हैं। गणित की कक्षा का तो वह हमेशा नायक रहा है। इस समय भी गणित के अध्यापक अख्त़र हुसैन जी उसकी क्षमता के बड़े प्रशंसक हैं। उन्होंने उसे अपनी पुस्तकें दे दी हैं और वे शायद उसकी स्थिति के बारे में जानते हैं।
 नवल को दुःख है कि वह पक्की मित्रता के बावजूद सब कुछ क्यों नहीं जानता।
 उसने तय किया कि उसे विनय की परिस्थिति के बारे में सब कुछ जानना ही है।
 घर आकर उसने अपनी मां से विनय के विषय में सब कुछ बताया।
 नवल के रुआंसे उदास चेहरे को देखकर वे दुःखी हुईं।
 शाम को उसके पिता के घर लौटने के बाद इस समस्या पर विचार किया गया। उसके माता पिता को लगा कि संभवतः विनय का परिवार किसी आर्थिक संकट में आ गया है।कोरोना महामारी के बाद कई परिवार ऐसे अनिष्ट को झेल रहे हैं।हो सकता है कि विनय के परिवार में भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ हो।वे विनय के विषय में अधिक नहीं जानते थे क्योंकि पारिवारिक स्थिति के बारे में तो नवल भी नहीं जानता था मगर विनय का घर कहां है यह वह अवश्य जानता था।


विनय और उसकी बड़ी बहन उन्हें देखकर चकित हुए मगर फिर आवभगत में जुट गए। थोड़ी देर में ही वहां एक स्त्री आई  और उनके पास बैठ गई। सौम्या,विनय की बहन ने बताया कि वे उनकी मां की मित्र हैं और उनके साथ ही रहती हैं।
घर में बड़ी उदासी थी।
विनय के माता पिता नहीं दिख रहे थे।
थोड़ी देर में ही उन्हें पता चल गया कि ढ़ाई साल पहले एक भयानक बस दुर्घटना में दोनों की मृत्यु हो गई थी। पिता एक निजी उद्यम में काम करते थे जिससे कुछ धन मिला अवश्य किंतु उससे उन्होंने इस घर का बैंक से लिया गया ऋण चुका दिया। मां की मित्र का भी दुनिया में कोई नहीं है।वे इस घर के नीचे के तल पर एक सिलाई कढ़ाई का स्कूल चला रही हैं और सौम्या जो उस वक्त आईआईटी खड़गपुर में इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में थी, अपनी पढ़ाई छोड़ कर लौट आई है और वे अब किसी तरह विनय की पढ़ाई की व्यवस्था कर पा रहे हैं। उन्हें पता है कि फीस देने के बाद इस वर्ष की किताबें इत्यादि खरीदने में उन्हें थोड़ा वक्त लग रहा है।
विनय ने जैसे उन लोगों को आश्वस्त करते हुए बार बार कहा कि आज उसके पास सभी किताबें आ गई हैं।अख़्तर सर और संदीप सर ने इंतज़ाम कर दिया है।कल से उसके पास सब किताबें होंगी और उसे इस कारण कोई दंड नहीं मिलेगा।
विनय नवल के आने से हर्षित था।
बार बार उसे आश्वस्त कर रहा था मगर नवल की उदासी यहां आकर बढ़ गई थी।
उसकी मां ने सौम्या को गले से लगा लिया था। खूब स्नेह कर रही थीं वे।
सौम्या ने उनसे बार बार कहा भी कि उसे कोई दिक्कत नहीं है मगर नवल की मां ने पूछ लिया - ' फिर तुमने अपनी पढ़ाई क्यों छोड़ दी बिटिया!'
सौम्या हिचकिचा गई।
वस्तुत: वह किसी से मदद नहीं लेना चाहती थी,ऐसा लगा।
उसका परिवार आर्थिक रुप से बहुत मजबूत नहीं था मगर बहुत स्वाभिमानी था।वे सभी अपने प्रयत्न से इस परिस्थिति का सामना करना चाहते थे।

अपनी बहुत कम हो चुकी आय में वे मिलजुल कर कटौती पूर्वक काम चला रहे थे।
सौम्या ने बताया कि वह पास के ही एक ट्यूशन केंद्र पर आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए गणित पढ़ा रही है और कुछ पैसा जुट जाने पर फिर से आईआईटी की प्रतियोगिता में भाग लेगी और अपनी शिक्षा पूरी करेगी।
नवल के माता पिता उसके आत्मविश्वास और संघर्ष से बहुत प्रभावित हुए।
वे दोनों भाई बहन आत्मसम्मान की आभा से दमक रहे थे।
नवल ने बहुत उम्मीद से भर कर मां की ओर देखा तो पाया कि वे उसको भरोसा दिलाती हुई मुस्कुरा रही थीं।उन दोनों ने सौम्या और विनय का अभिभावक बन कर उनकी शिक्षा में योगदान करना तय कर लिया था।
सौम्या के हिचकने पर नवल के पिता ने कहा कि हमारी मदद तुम्हारे ऊपर कृपा नहीं है बल्कि हमारे देश में कई ऐसी मददगार योजनाएं हैं,संबल हैं जिनके बारे में तुम लोग नहीं जान पाए हो।जब तक उस स्तर पर कुछ संभव नहीं हो पाएगा हम लोग तुम्हारे लिए सब कुछ ऐसे ही करेंगे जैसे नवल के लिए करते हैं। इसमें हमें खुशी होगी।
नवल के दिल पर से एक बहुत बड़ा दुःख हट रहा था।
वह यह बताता हुआ रो पड़ा था कि कैसे कक्षा के अन्य साथी विनय की परिस्थिति न जानते हुए उसका मज़ाक उड़ाया करते हैं।
उसकी मां ने उसे विनय सहित अपने अंक में ले लिया और कहा - 'अन्यथा कुछ न सोचो।वे कुछ जानते नहीं इसलिए ऐसा करते हैं। देखना उन्हें उसके संघर्ष का ज्ञान होगा तो वे इस पर गर्व करेंगे '

सचमुच उन्होंने ठीक कहा था।
एक दिन आया जब पूरी कक्षा ने विनय के लिए खड़े होकर ताली बजाई।
विनय ने गणित विषय में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर पूरे देश का नाम किया था।
उसकी बहन आईआईटी खड़गपुर की सबसे योग्य विद्यार्थी के रुप में आगे पढ़ रही थी।
 नवल को गर्व था कि उसने मित्रता में मनुष्यता की विजय को हासिल किया है।



परिचय

प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी सुप्रसिद्ध कवयित्री हैं। उनके दो कविता संग्रह क्रमशः ‘वसंत के चुपचाप गुजर जाने पर’ तथा ‘शायद किसी दिन’ बेहतरीन संग्रहों में से हैं। इससे इतर गद्य की उनकी पुस्तक ‘इस उस मोड़ पर’ पिछले वर्षों में काफी चर्चित रही। 
पूर्वग्रह , शब्दयोग ,  चौथी दुनिया , परिकथा ,सुलभ इंडिया आदि पत्र -पत्रिकाओं  में कहानियाँ प्रकाशित।



1 टिप्पणी:

  1. Khahani bahut sunder hai. Dosti ko bahut acche se bataya gya hai aur Naveen privesh me isko rakha gya hai. Asha hai aisii aur bhi khahaniya padhne ko aage Milti rahengii 🙏😊
    Dhanyawaad.

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