रविवार, 30 अक्तूबर 2016

रुचि भल्ला की कहानी

कहानी
---------------------- शालमी गेट से कश्मीरी गेट तक .
......... ---------------------------------------------------- बूढ़ी होती 2015 की शाज़िया की यादें अब भी 1945 सी जवान हैं। उम्र की देह बूढ़ी होती चली जाती है पर देह के अंदर दिल सदाबहार के फूल सा ताजा रह जाता है। शाजिया के घर की खिड़की पर 1945 वाली याद हर शाम जाकर खड़ी हो जाती है उसी ताज़गी के साथ ....गुलाबी आँखों से कुमार की छत को देखती हुई .... वहाँ पतंग उड़ाता कुमार अब रहता नहीं है पर शाजिया को दिखता है अब भी वहीं । बीते बरसों में शाज़िया की आँखों में मोतियाबिंद उतर आया है पर कुमार अब भी वैसा दिखता है उसे उन आँखों से । अठारह का कुमार .... और वो सोलह के गुलाबी गालों वाली ।1945 में कुमार छत पर शाजिया के लिए आता था ।पतंग तो बहाना था । उसे शाजिया के संग वक्त बिताना होता था ।वो पतंग के साथ बहुत कुछ लाता कभी नीले कंचे कभी हरी चूड़ियाँ कभी खट्टा चूरन मीठे अमरूद चमेली के फूल लेमनचूस की गोलियाँ मखमली मोरपंख और गुलाबी कविताएँ ... शाजिया भी उसके लिए लाती थी ... परांठे में मक्खन की पर्तें लगा कर... हाथ में आम के अचार का महकता टुकड़ा छुपा कर । वक्त पतंग के साथ उड़ता रहा कुमार चौबीस का वो बाइस की हो गई....तभी एक रोज़ कुमार चला गया कहीं आगे की पढाई करने ....और जाते हुए शाजिया की खिड़की को दे गया लंबा इंतजार। जाते-जाते उसके हाथ कोई वादा तो नहीं दिया पर उसके हाथों में गीली मेंहदी की खुशबू वाली याद थमा गया। शाजिया उस खुशबू के साथ खिड़की पर खड़ी रहती ।ऊन के गुलाबी गोले साथ लिए , इंतजार की सिलाईयों पर तारीखों के फंदे डालती रहती। कुमार के लिए मेंहदी की खुशबू वाले मफलर बुनती जाती शाजिया अब बड़ी हो रही थी । साथ ही बड़ा होता जा रहा था हाथ में थमा इंतजार की ऊन का गोला भी । ये बात उन दिनों की है जब एक घर के आँगन में गुलाब खिलता तो खुशबू घर से जुड़े कई आँगनो में महकती थी .... पतंगें उछलते -कूदते कई घरों की छतें लाँघती जाती थीं । घरों के दरवाजों पर नाम बेशक अलग होते पर लोग घरों के अंदर एक दिल के होते थे ।वो वक्त ही ऐसा था .... कहते हैं वक्त सदा एक सा नहीं रहता , घूमता है उसका पहिया और देखते-देखते घूम गया । वक्त की आयी इस तेज आँधी में पतंगें फड़फड़ायीं .... गमले टूटे ..... गुलाब से खुशबू का लाल रंग बह गया ।बहुत कुछ बदला इस बीच .... नहीं बदला तो शाजिया का कुमार के लिए इंतजार। वो खिड़की से देखती ....उसे उड़ती पतंग दिखती ... कुमार नज़र नहीं आता .... कुमार पतंग के साथ उड़ते हुए कहीं दूर निकल गया था ...... इतना दूर कि शाजिया की आँखें खिड़की से उसका पीछा नही कर पातीं । ....इस इंतजार के साथ शाजिया अब बड़ी हो रही थी ... बड़ी हो रही थी उसकी उम्र ..... और ब्याह दी गई शाजिया एक दिन ..... विदा हो गई नए घर में .... ये नया घर सारा उसका अपना था .... नहीं थी तो केवल उसके कमरे की खिड़की। वैसे ये खिड़की बहुत बड़ी थी ....दूर तक दुनिया दिखती थी ... सिर्फ कुमार के घर की छत नज़र नहीं आती थी वहाँ से। शाजिया खिड़की बंद रखती थी। उसके हाथ अब घर के कामों में उलझे रहते ..... बुनाई करने का उसे वक्त नहीं मिलता .... और वैसे भी सर्दियों का वो गुलाबी मौसम बीत चुका था। शाजिया की उंगलियां अब क्रोशिया बुना करतीं इस नए मौसम में। घर की साज-सजावट का सामान बुनतीं ....मेजपोश .... चादर कुशन सिरहाने के गिलाफ.....। कुछ दिन बीते .... शाजिया मायके जा रही थी अम्मी-अब्बू के पास। ट्रेन पटरियों पर दौड़ रही थी ... दौड़ रहा था संग-संग शाजिया की आँखों का इंतजार .... शाजिया अपने घर की गली तक पहुँची ही थी कि उसके घर की खिड़की से आती सेंवईं की खुशबू दौड़ते हुए उसके गले जा लगी । घर के बाहर तांगा आ रुका।तांगे से नीचे उतरती शाजिया के साथ उसकी उम्र भी उतरने लगी , वो 1945 की हो आयी ।दौड़ते हुए अपने घर से गले मिली और भागते हुए जा पहुंची अपने कमरे में और रुक गई जाकर खिड़की के पास । शाजिया अर्से बाद खिड़की खोल रही थी पर अब वहाँ खिड़की के सामने कुमार की छत नहीं थी ।वहाँ उस छत पर अब सकीना खड़ी थी उसकी छुटपन की सहेली हाथ में किताब लिए । शाजिया कुमार को तलाश ही रही थी कि तभी कमरे के अंदर आते हुए अम्मी ने बताया, " सकीना के अम्मी-अब्बू ने कुमार का घर खरीद लिया है ।" चाय का कप मेज पर रखते हुए अम्मी बोल रही थीं , " एक रात अचानक बहुत तेज हवा के साथ आँधी चली शाजिया.... बहुत तेज तूफान था उस रात ....जलजला आया था शहर में .... और बहुत कुछ तबाह कर गया ... गिरा गया कई घरों की नींव ....उड़ा कर ले गया अपने साथ कई घरों की छतें .... उस रात कुमार का परिवार यहीं रुक गया था हमारे घर ....सुबह मुँह अँधेरे सरहद पार कर गया। सुना है ...अब दिल्ली में रहता है उनका परिवार ।" अम्मी की आवाज़ काँप रही थी उनके काँपते हाथों में नीले रंग का मखमली डिब्बा भी काँप रहा था ।शाजिया के हाथों में थमाते हुए बोलीं, "जाते हुए कुमार ये तुम्हारे लिए दे गया है, तुम्हारी शादी का तोहफा। "अम्मी डिब्बा थमा कर चली गईं । शाजिया ने कँपकँपाते हाथों से उसे खोला....डिब्बे में काँच की हरी चूड़ियाँ थीं ......शाजिया और कुमार का पसंदीदा हरा काँच रंग ।शाजिया हाथों में वो चूड़ियाँ पहनने लगी , अपने हाथ उसने कलेजे से लगा लिए। चूड़ियाँ कुमार की याद से खनकने लगीं। खनकती चूड़ियों में से आम के अचार का स्वाद उसके कमरे में महकने लगा ....। यादें कच्चे आम सी हरी हो आयीं ....इतनी हरी कि शाजिया पर आम और चूड़ियों का हरा रंग उतरने लगा। शाजिया हरी हो आयी। ....अलमारी खोल कर सिलाईयाँ निकाल बैठी और बुनने लगी कुमार की यादों का अधूरा मफलर .... तबसे बुन रही है शाजिया खिड़की पर खड़ी हुई ..... फिर ससुराल नहीं लौटी ...। सरहद के आर-पार पहरा देते सिपाही ये बात बताते हैं कि हर रोज़ आधी रात को सरहद पर दो दिल कहीं से आकर मिलते हैं ....हर सुबह सरहद पर दिखते हैं उन्हें हरे काँच की चूड़ियों के टुकड़े ....गुलाबी ऊन की बिखरी कतरनें ...और मिलते-बिछड़ते कदमों के निशान .... ।सरहद के आर -पार के सिपाहियों ने उन कदमों के निशान से पता लगाया है .... ये पाँव शालमी गेट और कश्मीरी गेट से आते-जाते हैं .... पर सिपाहियों को मालूम है इन निशानों की हकीकत कि रूहों के पाँव नहीं होते .... उनके पास तो सिर्फ दिल होता है ... और दिलों को आपस में मिलने से कोई सरहद रोक नहीं सकती ..........

- Ruchi Bhalla
परिचय नाम : रुचि भल्ला
प्रकाशन : परीकथा एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ... समाचारपत्रों में कविताएं प्रकाशित... काव्य संग्रह : कविताएँ फेसबुक से , काव्यशाला , सारांश समय का , क्योंकि हम ज़िन्दा हैं , कविता अनवरत ,ब्लाॅग : पहलीबार हमरंग गाथांतर अटूट बंधन प्रसारण : आकाशवाणी के इलाहाबाद तथा पुणे केन्द्रों से कविताओं का प्रसारण ... काव्य-मंच ... संपर्क : C -9 803 पुरी प्राणायाम सेक्टर 82 फरीदाबाद हरियाणा मोबाइल नं 09560180202 ई. मेल ruchibhalla72@gmail.

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा कथानक भी वर्णन भी और उपमाओं का तो कहना ही क्या 😊 😊 । एक बार में पूरी पढ़े बिना कोई रह नहीं सकता

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  2. खूबसूरत अहसास समेटे सुंदर कहानी

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  3. खूबसूरत अहसास समेटे सुंदर कहानी

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  4. Ruchijee,
    ise Phaltan ke kisi marathi lekhak se bhashantar karke,dainik aaikya me chhpwane ki koshish kare.
    Bahut hee umdaa aalekh hai.

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