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तुम्हारे जाने के बाद .......
तुम्हारे जाने के बाद
जाना कि
कैसे रखता है धैर्य खोकर अपनी टहनियों से
सूख कर गिरे पत्तों को पतझड में दुवार का बरगद
जबकि सबसे अधिक जरुरत थी उसे उन दिनों
पत्तों की चादर की
शुष्क होते मौसम में ।
फटी बिवाईयों सूखी टहनियों का सिहरना
पपडियाये सूखे होंठ की दरारों से खून की लाली का झलकना
मैंने देखा है टभकते दर्द की अनुभूति में सिहरते
बरगद को
तुम्हारे जाने के बाद ।
तुम्हारे जाने के बाद भी निकलता है सूरज
गली के मुहाने से
बिखेरता है सिन्दुरी छुवन हथेलियों पर
सुलगा देता है ठण्डी पडी राख में दबी यादों की चिन्गारी से
जीवन के अलाव को
अब भुले से यादों की बस्ती में सावन नहीं आता
पतझड ने डाल लिया है डेरा
बरगद सिहरता है
सुलगता है
दहकता है
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने देखा है ।
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रंग निरगुन सा रंगा सांची .......
रंग घोल लिया है टहटह लाल
विदाई की चादर रंगा लिया है रंगरेज
टांक दिया है चाँदनी का चँदावा चादर में
तारों की झालर लगा सजा रही हूँ
उस दिन जाऊँगी ओढ़ कर
रंग निरगुन सा रंगा सांची
जिस दिन आएगी डोली
तुम्हारे देस से ।
रंग रही हूँ रंगरेज
चमचम चमकते जुगनुओं के पंख सा श्वेत
चमकिला
सजा रही हूँ अमलतास के रंग में घोल कर
जोड़ा ,
पहले लपेट देना श्वेत रंग में रंगी चुनर में
फिर सजा देना ऊपर से जोड़ा ऊढा
जिस दिन रंगूँगी रंग निरगुन सा सांची ।
3-----
मौन गुनती हूँ आज भी ....
मौन गुनती हूँ आज भी
तुम्हारे आँखों की भाषा
जिसमें लिखी थी तुमने
राग गुलाबी
प्रेम अनुरागी
बजते थे तार - तार अमृत सा
सितार धुन
तुम्हारी आँखों में
मौन सुनती हूँ आज भी
जब उमड़ते हैं बादल मिलन के
सजती है धरती
चाँद थोड़ा और होता है मदहोश जब
मैं पढ़ लेती हूँ
सूखी पड़ी लहकती
दहकती धरती पर
तुम्हारे मौन आँखों की भाषा
ये प्रेम का सिन्दुरी विहान था
जानकर
संजोये रहती हूँ जीवन की उम्मीद
जरुरी है जीने के लिए
बचा रहना आँखों से आँखों का मौन मिलना
गुनना स्नेह अनुरागी ।
4-----------
माँ तुम्हारे गीत .........
माँ तुम्हारे गीत और जीवन
जैसे कलरव बादलों का
जैसे गुनगुन भौरों का
जैसे महकी हो अभी - अभी
खिली हुई रातरानी
कहा हो तितली से
सो जा नन्हीं परी ।
माँ तुम्हारे गीत और जीवन
जैसे अँखुवाऐ गेंहूँ की बालियों का कहना
ठहरो बस पकने को है भूख
जैसे सिहरते हुए जाडे में कहा हो अलाव ने
बैठो दम साध कर कि शेष है जीने भर
आग राख में
जैसे कहा हो चौखट ने मुंडेर से अभी -
अभी
रखा हैं पाँव दुलहीन ने
पडा है छाप आलते की लाली का
घर भरा है खुशियों से ।
माँ तुम्हारे गीत
जैसे नूर आसमानी
जैसे भरी झोली फकीर की
जैसे साँझ की लाली
जैसे रंग सतरंगी , रंगी हो भोर
जैसे आ बसी हो
देह में मधु की नरम मिसरी ।
माँ तुम्हारे गीत......
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मैंने सुना है अपने शहर के अन्तरनाद को .......
जब साँझ ढलती है
रातरानी की मधुर देह सजती है
गाती है राग अमर जीवन का
रंग कर रंगरेज सुबह की चादर
फैला देता है आकाश के छत पर
मेरा शहर जागता है
करघे पर तान कर तकली भर धागा
बुनता है सूत - सूत जोड कर
अरमानों की म ऊवाली साड़ी
ये साड़ी थोडी सिली मिलेगी कबीर के लहरतारा में
मीरा के प्रेम गीतों में
घुँघरुओं की खन खन सी खनकती
करघे की लय में
मैंने सुना है अपने शहर के अन्तरनाद को ......
जब आती है साथ साथ
आवाज अजान और आरती की
उठती है लोहबान और अगरबत्ती की गन्ध
मन्दिर , मस्जिद और मज़ारों से
ये शहर हँसता है खिलखिलाकर
जब मिलते हैं गले
ईद और होली में
राम और रहमान
चाँदनी तान लेती है चँदावा नूर का
मैंने सुना है अपने शहर के अन्तरनाद को .....
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किसी दिन आऊँगी मैं .....
मेरे जाने के बाद
तुम उदास हो
कि जैसे सूख कर गिर गयी हूँ
तुम्हारी साख से
देखना
मैं मिलूँगी
ओस की चिड़िया बन
मोती चुनते
तुम्हारी हथेलियों पर
जब चाँद थोड़ा अलसा कर
सर्द रातों में सिकुड़ कर बैठेगा
आकाश की गोद में
देखना
मैं मिलूँगी
तुम्हारे कानों में हरहराती
बासन्ती पवन संग गुनगुनाते
जब सूरज थोड़ा गरम होगा
मैं आऊँगी हर उस रात को
जब वन बेला महकेगी
मैं आऊँगी हर उस भोर में
जब हर सिंगार की गन्ध में नहाए तुम
आँखें मीचे मन की अतल गहराईयों में
मुझे निहार रहे होगे
देखना मैं आऊँगी.......
सोनी पाण्डेय
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