बुधवार, 23 जुलाई 2014

                                                           विस्फोट 



पुष्प पुष्प गूंथूं?
सुरभि भर श्वास भरूं?
तिनका तिनका चुन लूँ
स्वप्न नीड़ रचूँ?
कल्पना की बैसाखी थामे
पलायन की ओर बढूँ?

संग न होने का 
चरम तक बींधता दुःख.. 
मनाऊं.. या..
मौन की नम चादर ओढ़ लूँ?
यथार्थ के सूने आंगन की
चलूँ, किवाड़ खड़काऊँ?

प्रश्न मत करना कोई..
प्रश्न स्फुलिंग बन उठते हैं..
कोई घुटता मौन जब टूटता है
तोड़ कर सारे बाँध..
बहुधा..
वो विस्फोट.. अंतिम ही होता है. 


अपर्णा अनेकवर्णा 

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