सोमवार, 21 जुलाई 2014

                                               अभी और जीना था हमें 


हमे
इस पेड़ से उतर के चल देना हैं
अपनी लटकी हुई आँखों के साथ,
उलटे पंजो पर चल कर
चुप चाप
अपनी अपनी रस्सी को 
अपने हांथो में लेकर,

वहाँ.......
जहाँ हम पढ़ते थे
जहाँ हम खेलते थे
जहाँ हम एक दुसरे की चोटिया पकड़ कर लड़ते थे,
हमको अपने आंगन के पेड़ के आमो में
अपना हिस्सा भी लेना हैं,
अपने गुड्डा गुडिया का बटवारा भी करना हैं,

हमको
अभी चल देना हैं
अपनी फांसी को झुट्लाकर,
हम बहुत अहिस्ता अहिस्ता चलेंगी
जैसे हम छुपा छुपायी पर
एक दुसरे की नजरो में आये बिना चलती थी,
हमको
चलते चलते
अपने स्कूल भी जाना हैं
और होमवर्क न पूरा करने पर
बेंच पर खड़े होने की सजा भी पानी हैं
बहुत से काम हैं
हमको अभी
अपनी सभी सहेलियों से भी मिलना हैं
उनकी कानाफूसियों का जवाब भी देना हैं,

वो जवाब जो
उनकी माये गोल कर गई हैं,
हम इस पेड़ की फासी से उतर कर
बस एक बार,
उन सभी जगहों पर जाना चाहते हैं
जहाँ हम रोज़ पता नहीं कितनी बार जाते थे,
हमको अपनी सहेलियों को बताना हैं
उनके कानो में
अपने मरने का राज,
बताना ये भी हैं की
कल जब तुम
किसी सुनसान जगह से गुजरना तो,
हमारा हश्र याद रखना,

एक बार तो
जाना हैं
इस पेड़ से नीचे उतर कर,
हम
अपनी सहेलियों को
इस पेड़ पर मरते नहीं,
इसकी छाँव में खेलते देखना चाहती हैं.........................

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