सोमवार, 14 जुलाई 2014

बस / यूं ही !!!!!!
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मैं/ अभी /भी रोता हूँ
और/बेतरह
जैसे /पैदा होते ही रोया था
बेवजह
***

गो/कि/ अब /हम/मुहज़्ज़ब हो गए हैं
अब /न /तो/हम/ आशियाने जलाते हैं
न/ आदमी की गर्दनें उड़ाते हैं
तअज्जुब है
फिर/भी /हम /रात में /
बड़े आराम से सो जाते हैं
***
पर/ मैं/ अब /भी रोता हूँ
और/बेतरह
जैसे बचपन में रोया करता था
कोई खिलौना टूटने पर
या /बेवजह
***

अब/ कहां /कोई स्त्री -देह को देखता है
वासनामय दृष्टि से
या/ निगाहों से /ही/ सारे कपडे उघाड़ कर
निरम्बर करता है/उसे
और/रेंग कर
सांप की मानिंद /'कंटूरों' पर
लाज से तर करता है/उसे

पर /मैं/अब/भी/ रोता हूँ
और/बेतरह
जैसे / वांछित न मिलने पर रोता था
या/वेवजह

अब/ कहां कोई स्त्री की कोख फाड़ कर
बच्चा निकाल लेता है
और/झोंक देता है/
आग में
और/फिर/गाने लगता है
वन्दे मातरम् /
गर्व से / राग में

पर/मैं/अब/भी/ रोता हूँ
और/ बेतरह
कभी /तो/ कोई वजह होती है
कभी /बेवजह


कलीम अव्वल 

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