शनिवार, 12 जुलाई 2014

                                                "तिनकों की पाठशाला "


तिनको की पाठशाला में नहीं सिखाई जाती
भाषा प्रतिरोध की
वे सीखते हैं धारा के साथ बह जाने की कला
उनके बुजुर्ग जानते हैं तिनके
कभी नहीं बनते सहारा किसी
डूबते हुए का

फिर भी वे बरगलाते हैं गढ़ कर
नवजात तिनको को
अविश्वसनीय मुहावरें और कहावते

घाट घाट का पानी पिए ये
लम्बी दाढ़ियों वाले बुजुर्ग तिनके
रुक कर ठिठक कर
बह कर ,अकड़ कर
देखने जानने और
जान बूझ कर अनजान बनने की
तमाम कवायदों के बाद
आज तक नहीं समझा पाये

एक दूसरे का हाथ थाम किसी
सैलाब के सामने बाँध बन कर क्यूँ नहीं देखा
बवंडरों के भंवरो में उलझे
बवंडरों की आँखों में आँख डाल
किरकिरी सा क्यूँ नहीं कसके ....


मृदुला शुक्ला 

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