" क्या हम आज भी खड़े है उस मोड़ पर ??? "
वह सावलीँ सी लडकी
जो मटमैले दुपट्टे के कोर को
दबाये दाँत से
रोप रही है धान के नन्हेँ पौधे
धरती की छाती मेँ
उसकी निगाहेँ अब देख रही हैँ
पूरब के कोन से सूरज का उगना
वह छोडना चाहती है
सूरज के घर मेँ दक्खिन का कोना
इस लिऐ मेरी तरफ देख कर
लहराती है हर्ष से हवा मेँ हाथ
और हवा मेँ घुल कर आती है आवाज
हम भी अबकी आऐँगेँ
स्कूल मैडमजी ।
वह लडकी अब पढना चाहती है
सोनी
कल सोनी पांडे जी की यह कविता कई बार पढ़ी। .... दिमाग में घूमती रही वो सांवली सी लड़की जो शायद समाज के पिछड़े वर्ग से आती है , निर्धन है जो पढ़ना चाहती है उसकी आँखों में अनगिनत सपनें है ,वह भी जीवन को एक दिशा देना चाहती है …
इसके ठीक विपरीत मैं जूझ रही हूँ एक ऐसी लड़की से जो दसवी में सीबीएसई बोर्ड में टेन पॉइंटर है ,बारहवीं की कक्षा जिसने 93 %अंकों से उत्तीर्ण की है , और पहले ही प्रयास में मेडिकल की परीक्षा उत्तीर्ण की है।
…… वो है एक मेधावी , अनुशाषित , परिश्रमी क्षात्रा। …… परन्तु दुर्भाग्य वो एक लड़की है , वो भी एक कम विकसित प्रदेश की..... जहाँ नारी होना शायद अपराध है , जहाँ है उस के पैरों में जकड़ी है कई बेड़ियां। .... मान्यताओं की ,रूढ़ियों की , और अंधविश्वासों की। .... शायद इसीलिए उसके माता -पिता ने सख्त आदेश दिया है की उसे निज शहर के अतिरिक्त किसी अन्य शहर में ,हॉस्टल में पढ़ने नहीं जाने देंगे। .... और निज शहर मिलने की सम्भावना नहीं है। …कल दिखी मुझे कुछ कुचले हुए सपनों के साथ , माता -पिता की इक्षा के आगे नतमस्तक, वीभत्स्व मौन धारण करे ……
वह लड़की
जो भाग्य से लड़ते हुए
अनवरत श्रम करते हुए
वह सावलीँ सी लडकी
जो मटमैले दुपट्टे के कोर को
दबाये दाँत से
रोप रही है धान के नन्हेँ पौधे
धरती की छाती मेँ
उसकी निगाहेँ अब देख रही हैँ
पूरब के कोन से सूरज का उगना
वह छोडना चाहती है
सूरज के घर मेँ दक्खिन का कोना
इस लिऐ मेरी तरफ देख कर
लहराती है हर्ष से हवा मेँ हाथ
और हवा मेँ घुल कर आती है आवाज
हम भी अबकी आऐँगेँ
स्कूल मैडमजी ।
वह लडकी अब पढना चाहती है
सोनी
कल सोनी पांडे जी की यह कविता कई बार पढ़ी। .... दिमाग में घूमती रही वो सांवली सी लड़की जो शायद समाज के पिछड़े वर्ग से आती है , निर्धन है जो पढ़ना चाहती है उसकी आँखों में अनगिनत सपनें है ,वह भी जीवन को एक दिशा देना चाहती है …
इसके ठीक विपरीत मैं जूझ रही हूँ एक ऐसी लड़की से जो दसवी में सीबीएसई बोर्ड में टेन पॉइंटर है ,बारहवीं की कक्षा जिसने 93 %अंकों से उत्तीर्ण की है , और पहले ही प्रयास में मेडिकल की परीक्षा उत्तीर्ण की है।
चित्र गूगल से साभार
वह लड़की
जो भाग्य से लड़ते हुए
अनवरत श्रम करते हुए
पहुँच गयी है क्षितिज पर
की जरा सा हाँथ बढ़ा कर
रख लेगी हथेली पर सूरज को
अचानक रोक दी गयी है
रूढ़ियों और मान्यताओं की
बेड़ियों द्वारा
आँखों में आंसू भर कहती है
मैडम जी
मैं मेडिकल की पढाई
पढ़ना चाहती हूँ
उसके माता -पिता के निर्णय से हैरान -परेशान मैं तुलना कर रही हूँ दो लड़कियों की। …क्या फर्क है जहाँ लड़की शिक्षा या अपने मन की शिक्षा पाने के मूलभूत अधिकार से सिर्फ इसलिए वंचित कर दी जाती है क्योंकि उसके ऊपर समाज की वर्जनाएं है , जहाँ लड़की सिर्फ विवाह करने के लिए पाली जाती है , और पुरानी सोच के चूहे लड़की के सपनों को कुतर -कुतर कर खा जाते है। …
शायद कुछ साल बाद वो लड़की मुझे मिले …हांथों में खनकती हुए चुडियों , और सिन्दूर भरी मांग के साथ , ……पर तब उसकी आँखों में कोई सपना नहीं होगा। …निस्तेज नीरव सी होंगी आँखें। .......... परंतु यह लड़की अकेली नहीं है , आधी आबादी ऐसी अनेकों लड़कियां होंगी , जो तथाकथित समाज के ठेकेदारों के लिए मिसाल होंगी। .... सहो ,वो भी तो सह रही है। …… यही तुम्हारा धर्म है.…… और समाज की परंपरा को निभाते हुए , इस अलिखित कानून के आगे सर झुकाते हुए , कितनी जिन्दा लाशें घूम रही है ,कितनी हत्याएँ रोज हो रही है…दुखद उनकी गिनती नही है।
क्या हम आज भी खड़े हैं उस मोड़ पर……
वंदना बाजपेयी
(आपके विचार आमंत्रित हैं )
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