मंगलवार, 15 जुलाई 2014

जीवन की हठ
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हर ढलते हुए दिन के साथ खुश होता हूँ 
कि नयी सुबह आने वाली है ....
हर आती हुई नयी सुबह फैलाती है एक डरावनी धुंध 
कि इसे भी तो बीत ही जाना है ,
इसी ख़ुशी और डर के बीच ज़िंदा है जीवन 
ज़िंदा हूँ मैं.....

एक दिन एक नयी सुबह मेरा प्राप्य होगी
और जीवन सुबह के आगे ,
एक शाम को चुनौती देगा ......
कि उसने ठान लिया है शाम की नीरसता का विरोध
कि उसने सुबह का स्वर्णिम समय देखा है।


अश्विनी आदम 

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