सोमवार, 9 जून 2014

"नए -नए बूढ़े "

वे उन सबसे खफा हो जाते हैं
जो उनके सफ़ेद बालो की याद दिलाते हैं
गालो पर पड़ी झुर्रिया दिखाते हैं

नए नए बूढ़े
अब अपनी मोर्निंग वाक का एक चक्कर और बढ़ा देते हैं
वो डरते हैं खुद के खारिज होने से
वो दिखाना चाहते हैं
अभी भी उनमे कितना दम बचा हैं..

वो जान बुझ कर रोमांटिक बाते करते हैं
आती जाती लडकियों ने कितनी बार उन्हें देखा
अपनी बीवियों को गिन गिन कर बताते हैं

नए बूढ़े
दूर रहना चाहते हैं पुराने बूढों से
वो पुराने बूढों से घबराते हैं
क्युकी वो जानते हैं
यही उनका भी कल हैं

एक उम्र में खुद को खपा कर
ये नए नए बूढ़े
अपना किस्सा खत्म मानने को तैयार नहीं हैं
उन्होंने खुद को
पूरी उम्र एक ताज़ा तरीन जवान बने देखा हैं
ज़माने को बनते और मिटते देखा हैं

अब वो जान रहे हैं
उनका भी मिटना बस कुछ सालो की बात हैं

नए बूढ़े
अपनी उखड़ती सांसो को दम साध कर रोक लेते हैं
वो जल्दी जल्दी सब कुछ सही कर लेना चाहते हैं

नकचड़ी बहु
खिसियाया हुआ बेटा और उबियाई हुई बीवी
नए नए बूढों को
पुराना बूढ़ा साबित करने की
बहुत जल्दी में हैं

नया बूढ़ा सबके सामने बहुत बढ़ा शेखीखोर हैं
पर
अकेले में
बहुत डरा हुआ हैं.........................


वीरू सोनकर 

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