तुम ही थे ..............................................................
बादल बूँदें धरती अम्बर,सब कुछ था पर तुम न थे
तुम सा ही दिखता था सबकुछ,तुम सा था पर तुम न थे
धवल चांदनी में भी धुन थी, तेरी ही रुनझुन गुनगुन थी
बिछी हर सिंगार की चादर,तुम सी थी पर तुम न थे
थी आजान या शहनाई,या बहती थी किसलय पुरवाई
देवालय से आती ध्वनियाँ,तुम सी थी पर तुम न थे
ईद का मिलन,होली के रंग,या आतिशबाजी दिवाली की
कितने पावन दिवस गए सब ,तुम से थे पर तुम न थे
हर एक दिन एक साल रहा, पतझर भी मधुमास रहा
लगता था बसंत का मौसम, तुम जैसा पर तुम न थे
मुक्त छंद थे,कवितायेँ थी,गीतों की भी मालाएं थी
सपनो से रची -पगी कहानी,तुम सी थी पर तुम न थे
पर अधजली चिट्ठियों के टुकड़े,और मुट्ठी से फिलसी रेत
आँखों से जो नमक बह गया,तुम सा था और तुम ही थे
संगीता पांडे
बादल बूँदें धरती अम्बर,सब कुछ था पर तुम न थे
तुम सा ही दिखता था सबकुछ,तुम सा था पर तुम न थे
धवल चांदनी में भी धुन थी, तेरी ही रुनझुन गुनगुन थी
बिछी हर सिंगार की चादर,तुम सी थी पर तुम न थे
थी आजान या शहनाई,या बहती थी किसलय पुरवाई
देवालय से आती ध्वनियाँ,तुम सी थी पर तुम न थे
ईद का मिलन,होली के रंग,या आतिशबाजी दिवाली की
कितने पावन दिवस गए सब ,तुम से थे पर तुम न थे
हर एक दिन एक साल रहा, पतझर भी मधुमास रहा
लगता था बसंत का मौसम, तुम जैसा पर तुम न थे
मुक्त छंद थे,कवितायेँ थी,गीतों की भी मालाएं थी
सपनो से रची -पगी कहानी,तुम सी थी पर तुम न थे
पर अधजली चिट्ठियों के टुकड़े,और मुट्ठी से फिलसी रेत
आँखों से जो नमक बह गया,तुम सा था और तुम ही थे
संगीता पांडे
तुम थे और न थे के बीच के सारे मौसमों ने बुनी सुन्दर कविता !
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