बुधवार, 11 जून 2014

******* गोदना ******

हर पाँच साल मे गोदता वह –गोदना,
चार महीनों तक । 
कोई गुदवाता अपने दाएँ हाथ पर,
अपनी जाति /मज़हब छुपाने को । 
कोई गुदवाता अपने बाँय हाथ पर,
अपनी जाति /मज़हब बताने को ।
अबकी,
एक और गोदना है उसके पास,
मुंह पर गुदवाने को,
जो छुपा लेगा,
शैतानीयत / वहशीपन / शातिरता ।
सुना है,
कई इंसानी भेड़िये,
कतार में लगे हैं,
इसे गुदवाने को ........... ।

गोदने वाला ख़ुद गुदा पड़ा है,
सर से लेकर पाँव तक ।
पर मेरे लिए,
इंसानियत का कोइ गोदना नही उसके पास ।

मैंने भी कभी,
गुदवाया था किसी की याद मे,
उसके नामाक्षर ।
अब इसे मिटाने जा रहा हूँ ......!


हिमांशु निर्भय 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें