रविवार, 8 जून 2014

''प्रेम''

नहीं कर सकती मैं
सिर्फ तुमसे प्रेम 
क्योंकि तुम्हारे मेरे 
जीवन में आने से 
बहुत पूर्व 
यह प्रेम बीज 
अंकुरित हो गए थे 
मेरे मन में 
जब मैंने जनम लिया था
तभी शरू हुआ मेरा
मेरा पहला प्रेम
अपनी माँ से
फिर पिता भाई -बहन
घर कि दीवारे लाँघते हुए
पहुँच गया स्कूल की
सहपाठियों शिक्षिकाओं तक
वो चाट वाला जो
अक्सर मेरे दोने में
एक गोलगप्पा ज्यादा रख
''खाई लो बिटिया ''कह कर
मुस्कुरा देता
या वो रिक्शेवाला जो
हर उठती नज़र को घूर कर
डरा देता
और कभी -कभी तुम्हारा
हाथ पकड़े
खो जाती हूँ प्रेम में
पेड़ो कि डालियों के
फूलो के ,भवरों के
या फिर रेंगती चीटियों के
प्रेम एक भाव है 

न की एकाधिकार 
अत :
प्रेम -प्रेम चिल्लाने से पहले 

तुम्हे
समझना पड़ेगा
प्रेमको उसके 

उसके सम्पूर्ण अर्थ में 
उसके
व्यापक परिपेक्ष में 


वंदना बाजपेयी 

1 टिप्पणी: