"बस एक बार "
मैँ चाहती हूँ
तुम एक बार छू कर देखो
मेरी अनुभूतियोँ के सतरंगी छुवन को
एक बार घुलो आत्मा के घट मेँ
एक बार फैलो सरहदोँ को तोडकर
बाँध दो मन्नत का सूत्र तुम एक बार वट वृक्ष पर
और अपने मैँ की श्रृंखला को तोडकर
बस एक बार प्रेम करो
तुमभी मेरी तरह
अपने पौरुष के दंभ को छोडकर
सोनी पाण्डेय
मैँ चाहती हूँ
तुम एक बार छू कर देखो
मेरी अनुभूतियोँ के सतरंगी छुवन को
एक बार घुलो आत्मा के घट मेँ
एक बार फैलो सरहदोँ को तोडकर
बाँध दो मन्नत का सूत्र तुम एक बार वट वृक्ष पर
और अपने मैँ की श्रृंखला को तोडकर
बस एक बार प्रेम करो
तुमभी मेरी तरह
अपने पौरुष के दंभ को छोडकर
सोनी पाण्डेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें