बांधू किस मन को?
इस पार बंधन के
होगा क्या?
क्या उस पार भला,
तय कैसे हो..
बांधू किस मन को?
सुख-सिहरन की लहरें बांधू
या विलगते दग्ध पलों को?
संदली सा सामिप्य बांधू या
विघटन के अंतिम क्षण को?
खुरचूं कि उभर आये
इक नई.. कपाल की रेख
हम-तुम छोड़ कर जी लूं
निर्लिप्त.. तुझ सी ही.. देख!!
.............................. ......
अनेकवर्णा
इस पार बंधन के
होगा क्या?
क्या उस पार भला,
तय कैसे हो..
बांधू किस मन को?
सुख-सिहरन की लहरें बांधू
या विलगते दग्ध पलों को?
संदली सा सामिप्य बांधू या
विघटन के अंतिम क्षण को?
खुरचूं कि उभर आये
इक नई.. कपाल की रेख
हम-तुम छोड़ कर जी लूं
निर्लिप्त.. तुझ सी ही.. देख!!
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अनेकवर्णा
सुंदर !!
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