दर्द के बासी जूठे बरतन धो कर,
शुबह उबाल रही छाँव भर कुकर
आस के आटे को गूंधती वो हाथें
निहार रही, केटली में उबलती चाय!
गोरैय्ये सी विलुप्त ख़ुशी भी चहके
जब प्याला से लब पे पहली छलके
सिप अब भी तब जैसी हाए लहराए!
माथे से बांधे आसमान हौसले की
कमर झुका बुहारे गर्द मद्धम मध्दम!
सर्द है सूना शबनम, फोन टिटहरी सा
झाड के बिस्तर से अनलाईक कल के
तह दे लगाता मेसेज, ईमेल, रिलेशन को!
देख सूरज के आते आते,
टेबल पे कैलेंडर से नोच फेंकता
अपने जीवन से, बीते कल, एक दिन को!
और लाद लेता पेशानी पे बल दे,
किश्तों में जुड़े एक और नए दिन को!
और कडाही में तेल किस्मत की
सपने तल रही दुलार की छलनी से!
तवे पे आंसू सी चटख रही यादें
मुसीबत मुफलिसी पल बूंदों से
दर्द के बासी जूठे बरतन धो कर,
शुबह उबाल रही छाँव भर कुकर
आस के आटे को गूंधती वो हाथें
निहार रही, केटली में उबलती चाय!
( कतरन से)
अनुराग तिवारी
शुबह उबाल रही छाँव भर कुकर
आस के आटे को गूंधती वो हाथें
निहार रही, केटली में उबलती चाय!
गोरैय्ये सी विलुप्त ख़ुशी भी चहके
जब प्याला से लब पे पहली छलके
सिप अब भी तब जैसी हाए लहराए!
माथे से बांधे आसमान हौसले की
कमर झुका बुहारे गर्द मद्धम मध्दम!
सर्द है सूना शबनम, फोन टिटहरी सा
झाड के बिस्तर से अनलाईक कल के
तह दे लगाता मेसेज, ईमेल, रिलेशन को!
देख सूरज के आते आते,
टेबल पे कैलेंडर से नोच फेंकता
अपने जीवन से, बीते कल, एक दिन को!
और लाद लेता पेशानी पे बल दे,
किश्तों में जुड़े एक और नए दिन को!
और कडाही में तेल किस्मत की
सपने तल रही दुलार की छलनी से!
तवे पे आंसू सी चटख रही यादें
मुसीबत मुफलिसी पल बूंदों से
दर्द के बासी जूठे बरतन धो कर,
शुबह उबाल रही छाँव भर कुकर
आस के आटे को गूंधती वो हाथें
निहार रही, केटली में उबलती चाय!
( कतरन से)
अनुराग तिवारी
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