मंगलवार, 17 जून 2014

स्त्री का मायके आना 
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स्त्री का मायके आना 
लिपटना होता है 
अपने बचपन के साये से 
जिम्मेवारियों को टाँग खूंटी पर 
होता है अल्हड मौजों से घिरना 
स्त्री का मायके आना 
होता है एक पावन भाव बन जाना 
जैसे काशी की गंगा का 
अपने उद्‌गम हिमालय की ओर देख
उत्तरवाहिनी हो बहना
स्त्री का मायके आना
होता है फिर से एक नई स्त्री का बनना
कुंठाओं ,उपेक्षाओं और परंपराओं की धूल झाड़
फिर से निखर जाना
स्त्री का मायके आना
होता है मायके में
वसंत ऋतु का आना
स्त्री के लिये मायका
कहकहों में घुल
मिठास बन निकलना होता है
स्त्री का मायका सिर्फ एक घर नहीं
उसके हृदय को इन्द्रधनुष
बना देने वाला ब्रश भी होता है


वीणा वत्सल सिंह 

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