सोमवार, 16 जून 2014

" मृत्यु-विलाप "

साहुकार के ऋण-सी
चलती थी जो खाँस
है मौन आज पसरा हुआ
शायद रुक गई साँस

नहीं रहे बापू अब
हो गया अवसान
रात के तीसरे पहर में
बहू गई है जान

बेटी ना उठा ले
सर पर आसमान
चुपके से ठिकाने लगा रही
बहू,पीतल का सामान

बेटा बक्से से भिड़ा है
पर वह ताला भी अड़ा है
पोता रखवाली करता
दरवाजे पर जा खड़ा है

बेटी जाग गई है अब
हो गई है भोर
'हाय ! बापू मर गया'
सबको अकेला छोड़.....
आँखें मलते सब निकले
आँगन में उठा शोर....

करती फूट-फूट कर रुदन
पिता आँगन में पड़ा है
बेटी हाथ से चिपटी हुई
जिस हाथ चाँदी का कड़ा है !

बेटा बोला पत्नी से -
'पटना वाली' के आने से पहले
धर लो बापू का तकिया
फिर फोन कर दो भाई को
जो रहता तिनसुकिया

जो भी लग सकता था हाथ
सब धर लिया गया है
मृत्यु-विलाप की तैयारी
को कर लिया गया है

'रामपुर वाली' बहन आ गई
करती हुई विलाप
टूट गया पति-पत्नी का
गुपचुप होता आलाप...

निकल पड़ी पत्नी दहाड़ते
पति हुआ अचेत
आर्त्त स्वरों का कर्कश सुर
गान हुआ समवेत....

जुट गई है भीड़ अब
हो रहा वेदना-प्रलाप
बढ़ने लगी चीखों की तीव्रता
चल रहा मृत्यु-विलाप....!!

प्रशांत 

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