शुक्रवार, 20 जून 2014

" आँखे "

किस -किस को हम पढ़े 
किस -किस को हम बताये 
हर आँख पर लिखी है 
कई अलिखित कथाएँ 

कुछ मुस्कुराती आँखे 
हर बात बोले देती 
खिलखिलाती आँखे 
हर राज खोल देती
छिपती है कब किसी से
दिल में भरी वफायें

बेचैन आत्मा सी जो
इधर-उधर डोलती है
है टनो बोझ पलकों पर
जबरन ही खोलती है
छिपती है कब किसी से
जीवन कि विडंबनाएँ

कुछ दर्द से भरी है
उदास सी खड़ी वो
रोके है दम लगा कर
आंसू कि फुलझड़ी को
छिपती है कब किसी से
मन में भरी व्यथाएँ

कुछ बाट जोहती सी
कुछ राह ताकती सी
लगती है बहुत प्यारी
ये दफ़न झुर्रियों में
छिपती है कब किसी से
बुजुर्गों की ये दुआएँ 


वंदना बाजपेयी



                                                     चित्र गूगल से साभार

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