शुक्रवार, 13 जून 2014

बाईसवी सदी की स्त्रीत्वविहीन स्त्रियाँ
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कुछ बेलौस स्त्रियाँ
आधुनिक/ स्वतंत्र /नारीवादी स्त्रियाँ...
उन्मुक्त परिवेश में किंग साइज सिगरेट पर
बाईसवीं सदी की लिपस्टिक के निशान उडाती स्त्रियाँ
महँगी शराब के क्रिस्टल में रंगीन गर्भपात का कडवापन छिपाती
हँसती मुस्कुराती स्त्रीत्व की ज़िंदा लाश पर अभिमान जताती स्त्रियाँ
पुरुषत्व के विरोध में "पुरुष" जैसी हो जाती स्त्रियाँ
शादी की गुलामी का बहिष्कार जताती स्त्रियाँ
अवसाद का धार दंश शारीरिक ताप लुटाती स्त्रियाँ
उनकी साड़ी/ उनका मेकअप/उनके लहराते सुगन्धित बाल
उनके स्त्रीत्व का पर्याय हैं, प्रमाण हैं.....
सहज अभिव्यक्ति को भी व्यर्थ प्रमाण बनाती स्त्रियाँ
रूढ़ नियमो का विरोध
दौर्बल्य की घृणित आधुनिकता
आत्मसात कर पुरुषत्व की त्याज्य स्वक्षन्दता का
संकुचित औचित्यहीन परिमाप बनाती स्त्रियाँ,
खोकर ममत्व की सार्वभौमिक पहचान
होकर भौतिक जगत में मात्र परिष्कृत साधन
विरक्ति की आड़ में बहिष्कृत कर साध्य को
मनुष्यता के अर्धांग का मज़ाक बनाती स्त्रियाँ,
उपहास के केंद्र में कटाक्ष खुद को मान के
अपनी ही गरिमा की परिधि लांघती स्त्रियाँ
आर्थिक हो केवल स्वावलंब औ भोग तक हो स्वातन्त्र्य
जीवन के शर्म में छिपी आत्मघाती स्त्रियाँ
मृत्यु की आगोश में स्त्रीत्व पाती स्त्रियाँ
कहकहों के शोर में नंगी नहाती स्त्रियाँ
माहवारी के दिनों में चैन पाती स्त्रियाँ
स्वयं हो कस्तूरी हिरन सुगंध तलाशती स्त्रियाँ
मुक्ति की तलाश में मृत्यु गाती स्त्रियाँ
ये स्त्रीत्व बोध ही सुकून है इन स्त्रियों का
स्त्रीत्व को रौंद कर स्त्रीत्व मांगती स्त्रियाँ

विडम्बना परिवेश निर्मित दिग्भ्रमित और कुत्सित
भटक चुके मार्ग पर लक्ष्य पाती स्त्रियाँ
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ये स्त्रियाँ आधुनिकता के स्याद दर्शन का परिणाम हैं।

अश्वनी आदम 

1 टिप्पणी:

  1. स्वतंत्रता के नाम पर परम्पराओं को तोडना ,स्वछंद जीवन की चाह,पाश्चात्य जीवन शैली का अन्धानुकरण न नारी के हित में है न समाज के

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