मंगलवार, 1 मार्च 2022

समकाल : कविता का स्त्रीकाल -27

यह समकालीन स्त्री कविता का सबसे सुन्दर समय है जब एक साथ हिन्दी में विभिन्न प्रन्तीय भाषाओं की कवयित्रियों ने मजबूत दखल बनाई है।मीता दास मूलतः बांग्ला भाषी हैं और बंग्ला के साथ -साथ हिन्दी में भी कविताएँ लिखती हैं।आपकी कविताओं के प्रतिरोधी तेवर आपको कात्यायनी की परम्परा से हिन्दी में जोड़ते हैं।समाज के दबे कुचले शोषित वर्ग के प्रति मानवीय करुणा आपकी कविताओं में व्यापक फलक पर उभरता है।मीता दास हिन्दी और बांग्ला के बीच की वह मजबूत सेतु हैं जो दो भाषा संसार की सांस्कृतिक चेतना से हमें रू-ब-रू कराती हैं।


मीता दास की कविताएँ


  { 1 }      ०००" चूहा भात - भात चूहा "०००    

                                         
                             
        चूहा भात - भात चूहा  
        भात चूहा हो या चूहा भात ...........ओ मुसहर 
        मुसुहा खा - खा कर बने हो मुसहर 
        और यहाँ सारे सरकारी हथकंडे जारी हैं तुम्हे भुलाने और 
        तुम्हारी उपस्थित को 
        दर्ज करने में कर रहे कोताही 
        ठेल रहे हैं बिलों में तुम्हारी सारी जनसँख्या को 
        
        तुम सब जिन्दा हो चूहों के लिए या चूहे जिन्दा हैं 
        तुम्हे जिन्दा रखने के लिए 

        कौन किसके लिए जिन्दा है ?

        चूहा सरकार 
        चूहा मुसहर 
        या चूहा भात या भात चूहा 

        सरकार के खोदे हुए बिल में 
        छुपे हुये है तुम्हारे जीने मरने के आंकड़े 

        सरकारी दाल खा गये दुकानदार 
        सब्जी खा गये चतुर जानवर …… 
        चांवल !
        दब गए खेतों में
        पाले की मार से और बच गये 
        चूहे 
       तुम्हार हिस्से 
       गोदाम में 
       किसिम - किसिम के चूहे 
        इस खेत , उस जंगल इस प्रदेश उस प्रदेश सभी ओर के चूहे 
        अब करते हैं
        आवाजाही 
        वे भी भूखे , कीटनाशक से त्रस्त 
        रोगों को वहन करती दौड़ पड़ती है अपनी जान बचाने 
        तुम भी भूखे नंगे , बेरहम पेट की ज्वाला से त्रस्त 
        पकड़ कर ही मानते , भात - चूहा को तरसते 
        खुदसा माझी ,बरहमु या चतुरा, एक्का 

        परिवार बड़ा , कुनबा बड़ा 
        चूहे तो उतने ही होंगे 
        जितनी उनकी प्रजनन क्षमता होगी या 
        मुसहरों , कीटनाशकों और नामालूम बीमारी से न मर गए हों 
        पर तुम्हारा क्या ...........मुसहर 
        तुम्हारे तो प्रजनन क्षमता के सारे मुफ्त सरकारी उपाय भी 
        है कालाबाजारी के हत्थे 
        हर कस्बे के मेडिकल शॉप में
        धड़ल्ले से बिक रहे मुंह मांगी कीमतों पर 
        कोई फैमिली प्लानिंग कैम्प भी नहीं चलते 
        न ही बंटता  हैं तरीके ही मुफ्त और न ही बंटते है सरकारी राशन 

        तुम्हारे भूखे - नंगे बच्चे और तुम 
        अनजानी अनचाही बीमारियों से मरकर ही इतने बचे हैं कि
        चूहा मिल ही जाता है एक आध 
        और तुम दो वक़्त की ही नहीं 
        एक वक़्त की कम से कम जुगाड़ ही लेते हो 
        भात - चूहा 
        केरोसिन पर नहीं 
        झाड़ - झंकाड़ जलाकर 
        भून ही लेते हो चूहा 
        और भात संग सान गटक जाते हो  
        अगला चूहा मिलने तक | 

                       000000 


   

{ 2 }
   
              
    ०००" फिलिस्तीनी कविता पढ़ते हुए "००० 


         { नवजान दरवीश कहते है -------- फ़ादो , औरों की  तरह नींद मुझे भी                                       आ ही जाएगी इस गोली बारी के दरमियान ............}

                                                                      

        हाँ, हाँ ,हाँ 
        रक्त की गंध में भी मुझे नींद आ ही जाएगी 
        चीखते बिलखते बच्चों के खुनी फौवारों से नहा कर भी , 
        मुझे नींद आ ही जाएगी 
        बस दुःख होगा इस बात पर 
        कि मेरा देश इस बात पर चुप्पी साधे बैठा है 
        हवाई दौरों के सफ़र में मशरूफ़ 
        दूरबीन से हवाई पट्टी को ताकता हुआ विमान की खुली खिड़की से 
        उन्हीं बच्चों की लाशों के ऊपर से हवाई उड़ान भरकर 
        हर वो सरहद पार कर लेगा 
        अपनी हदें पहचानने और भुनाने के लिए 
        अधमरे , खून से लथपथ बच्चों की लाशों पर से गुजर जायेगा 
        फिर न उफ़ न आह बस एक गंभीर हँसी लपेटे 
        बढ़ जायेगा अपने दौरे के अगले पड़ाव की ओर 


       ...................


        ये चुप्पी तुम्हे महँगी न पड़े 
        बच्चे माफ़ नहीं करेंगे कभी तुम्हे 
        नींद तुम्हें भी आ ही जाएगी 
        राजसी ठाठ - बाट में पर 
        रक्त के सूखते धब्बों की गंध 
        नहीं दब पायेगी किसी रूम फ्रेशनर से या न ही 
        टेलीविजन पर विज्ञापित किसी डियोड्रेंड से ही | 


                      ००००००००० 


 
{ 3 }
    
    ००० कहाँ है वे संस्थायें " क्राई या सेव द चिल्ड्रन "०००  

                                                 


        बच्चे सिर्फ रो ही नहीं रहे 
        तड़फ - तड़फ कर मर भी रहे हैं 
        उनकी लाशों पर यह कैसी विजय पताका 
        लहराने को उत्सुक हो 
        हे हथियार बंद सैनिको क्या तुम्हारे बच्चों की शक्लें 
        इन बच्चों की शक्लों से जुदा हैं 


        कोई कहता है फिलिस्तीनी बर्बरता पर लिखो कविता 
        पर हाथ नहीं उठते , लाल रंग बोलता है , लिखता कुछ नहीं 
        आँखे नहीं दोहराना चाहती उन मासूमों के चेहरे 
        जो बर्बरता से कुचल दिए या भून दिए गए हैं 


        नही चलाना चाहते कलम ,
        उठाना चाहते हैं बन्दूक बच्चे भी उनके खिलाफ 
        कई बच्चे तो मीडिया वालों के कैमरे को ही बन्दूक की नली समझ 
        अपने दोनों हाथ समर्पण की मुद्रा में उठा रखते है 


        पर हमें पता है मानवता का पाठ सिर्फ रटने या रटाने के लिए नहीं बनी 
        


        जेरुसलम को अब 
        याद रक्खेंगे ईशा के सलीब के लिए नहीं 
        मासूम बच्चों के बिलखते रुदन से 


        और पेशावर को ? 


                        ०००००००००००० 



{ 4 }        

०००  " सिगरेट की क्या बिसात " ०००                     

          उसने सिगरेट का कश लिया 
          और फूंक डाले सारे अवसाद 
          सिगरेट के धुएं को लीला कुछ इस तरह कि 
          सारी चुभन लील गई एक ही साँस में 


          सिगरेट फूंकना सिर्फ एक मर्ज नहीं 
          एक दवा भी है 
          उसने  जान लिया था 
          धुंएँ के छल्ले उछालते उन मर्दों से 
          जो टेढ़ी हँसी हँस कर फिकरा सा कश ही देते थे 
          क्या स्त्री फूंक सकती हैं सिगरेट 
          वे हमेशा ही मुगालते में रहते हैं 
          उन्हें नही पता 
          सिगरेट क्या  वे सारा जहाँ फूंक सकती हैं 
          सिगरेट की क्या बिसात | 


          उस स्त्री ने छल्ला बनाया धुंएँ का 
          गोल मटमैला सा 
          ऊपर उठता हुआ 
          देखा तिरछी नजर से 
          छल्ला आहिस्ते - आहिस्ते विलीन हो गया 
          रह गई सिर्फ गंध 
          दुर्गन्ध भी कह सकते हैं  
          फिकरे की चुभन
          उड़ा चुकी वह छल्ला बना 
          बची रह गई सिर्फ और सिर्फ दुर्गन्ध ............|


                             ०००००००० 


{ 5}         

 ०००   " बच्चों के नाम " ००० 

                                      
          बच्चों ने दी शहादत 
          गाजा आज खाली शिशु , बच्चों और किशोरों से 
          इज़राइली टैंक घूम रहे हैं सरपट , बच्चा खोर की तरह 
          उधर भूमध्य सागर का सीना चीरता 
          फुंफकारता है युद्धपोत 

          पैलेस्टाइन के सीने पर खिंची वह तीस फुट ऊँची दीवार इज़राइलकी 
          उस पार की जमीन पर अब कब्ज़ा है इजराइलों का 
          बच्चों के खेलने के मैदानो में फ़ैल गए हैं इज़राइली मिलट्री कैम्प 
          बच्चे तुम और तुमसे बड़े सभी बंदी हैं इज़राइली कैदखानों में 
          होता है रोज कत्लेआम वहां |
          
                       ०००००० 
{ 6}       

०००  " शहीद शिशु - बच्चे " ००० 

                                  

          तुम्हारी कलपती आत्माएं 
          क्या चैन से सोने देती होंगी 
          उन कातिलों को ? 


          शत्रुओं के हैलीकॉपटर लैंड होते हैं 
          तुम्हारे पूर्वजों की छतों पर , खेत - खलिहानों पर 
          वे रौंदते हैं भारी - भरकम बूटों , बमों , बंदूकों से 
          घायल , मृत लाशों से भरे मिलट्री के ट्रक , एम्बुलेंस के चक्कों से 
          चाक होते हैं तुम्हारे ही रक्त बिंदु , अब झरते नहीं सूख गए हैं | 


          सूखे हलक से उच्चारित भी नहीं होते 
          छलनी हुए उन शहीद शिशुओं के नाम 
          गाँव या स्कूलों के पते 
          अब वे पेशावर के नाम से पहचाने जाते हैं 
          क्यूँ की शहीदों की शिनाख्त सिर्फ 
          कब्रिस्तान में या फिर फिजाओं में हैं दर्ज | 

                           ०००००००००००० 





परिचय 

नाम ---मीता दास 
जन्म ------12 जुलाई सन 1961, जबलपुर { मध्य प्रदेश }
शिक्षा ------ बी . एस . सी विधा ------- हिंदी भाषा & बांग्ला  भाषा में कविता , कहानी , लेख , अनुवाद और संपादन

प्रकाशित ग्रन्थ -----  1...." अंतर मम" काव्य ग्रन्थ , बांग्ला भाषा में  2003 में
2 ....नवारुण भट्टाचार्य की कविताएं ( अनुवाद - मीता दास ) प्रकाशित 
3 .... भारतीय भाषार ओंगोने ( अनुवाद हिंदी कवियों का बांग्ला भाषा मे अनुवाद - मीता दास ) प्रकाशित 
5... काठेर स्वप्न ( हिंदी की प्रतिष्टित कहानियों के बांग्ला अनुवाद ) संकलन प्रकाशित
6... जोगेन चौधुरी की बांग्ला कविताओं का हिंदी अनुवाद प्रकाशित 
7... जोगेन चौधुरी के 2 संस्मरण का हिंदी अनुवाद प्रकाशित 
8... " पाथुरे मेये" स्वयं की बांग्ला कविताओं का संकलन प्रकाशित 
9.....'' अनुवाद एर जलसा'' {अनुदित कविताओं का संकलन बांग्ला भाषा में } प्रकाशधीन
10 .... हिंदी कवि अग्निशेखर की कविताओं के बांग्ला अनुवाद - मीता दास ) प्रकाशित 
11.... नवारुण भट्टाचार्य की कविताओं के अनुवाद प्रकाशधीन(अनुवाद - मीता दास )
12 ... सुकान्त भट्टाचार्य की कविताओं का अनुवाद ( मीता दास ) प्रकाशधीन ।
13... स्वयं कीकहानियों का संकलन ( हिंदी ) संभावना प्रकाशन से शीघ्र प्रकाशित 
14 ... हिंदी में स्वयं की कविताओं का संकलन शीघ्र प्रकाशित 

संपादन -------- 1... " हम बीस सदी के " काव्य संकलन में संकलित कवितायेँ और संग्रह के संपादक मंडल में
2..." धरातल के स्वर "के संपादक मंडल में
3..." छत्तीस गढ़ आस पास "के संपादन मंडल में
4.... कृत्या पोएट्री वेब पत्रिका का संपादन 

प्रसारण ---1.... आकाशवाणी रायपुर से 25 वर्षों से लगातार स्वरचित कविताओं का प्रसारण
2.... दूरदर्शन रायपुर से कवितआओं का प्रसारण
3.... भोपाल दूरदर्शन से गीतों का प्रसारण { गायिका ....तपोशी नागराज , संगीत --- मुरलीधर नागराज }

प्रकाशन --1... बांग्ला  कहानी एवं कविताओं का लगातार15 वर्षों से लेखन ,एवं रेखांकन भी प्रकाशित
2... हिंदी कहानी एवं कविताओं का लगारत लेखन ,एवं रेखांकन का प्रकाशन
3... हिंदी से बांग्ला . बांग्ला से हिंदी में कविता , कहानियों का अनुवाद एवं प्रकाशन
पत्र  पत्रिकाएं ---- --- पहल , वागर्थ , नया ज्ञानोदय , मन्तव्य , पाखी , पक्षधर, नवनीत , समावर्तन , लहक , दोआबा, समकालीन जनमत , पब्लिक एजेंडा , जनसत्ता , युद्ध रत आम आदमी , प्रसंग ,  रेवान्त , संबोधन ,शेष , दुनिया इन दिनों , अभिनव मीमांशा ,सूत्र , अरावली ऊदघोष  , परस्पर , सनद, समग्र दृष्टि ,सद्भावना दर्पण, राष्ट्र सेतु , छत्तीस गढ़ आस पास , छत्तीस गढ़ टुडे , नारी का संबल , विकल्प , साहित्य नामा , अक्षर की छांव , संतुलन ,बहुमत {ग्रामोदय } आदि ।

 समाचार पत्र --------दैनिक भाष्कर , नई दुनिया , नव भारत , देशबंधु , प्रभात खबर , जनसत्ता ,दैनिक प्रखर समाचार , देश बंधू , दैनिक युग पक्ष , अमृत धारा

विविध ...............1... प्रौढ़ शिक्षा संस्थान द्वारा ....." नव साक्षर लेखन " पिछले  10 वर्षों से लगातार लेखन और कार्य शाला में शिरकत
                                     
2...छत्तीस  गढ़ पाठ्य पुस्तक निगम की तरफ से नव साक्षर लोगों के पुस्तकों के चयन मंडल में शामिल


पुरस्कार ------------- कहानी ------" पहलू यह भी " भिलाई भाषा भारती पुरस्कार सन 1999 में

सम्मान -------------- 
1.... उत्तर बंग नाट्य जगत शिलिगुड़ी से ...." कवि रोबिन सूर सम्मान" { हिंदी कवि सम्मान }सन 2002 में                                      
2...." हिंदी विद्या रत्न भारती सम्मान " कादंबरी सहिय परिषद सन 2003 में 
3...." डा 0 खूब चंद बघेल सम्मान "
 2005 में
4.... प्रसस्ती पत्र " हिंदी साहित्य हेतु , छत्तीस गढ़ अल्प संख्यक आयोग द्वारा सन 2005 में
5.... " राष्ट्र भाषा अलंकरण " छत्तीस गढ़ प्रचार समिति द्वारा सन 2008 मे       
6.... प्रेमचंद अगासदिया सम्मान 2019       7.... बांग्ला साहित्य अकादमी { छत्तीस गढ़ शाखा द्वारा } प्रशस्ति पत्र 2010 में

संप्रति ----
1.... जन संस्कृति मंच दुर्ग - भिलाई ( छत्तीसगढ़ की अध्यक्ष )                       
2....बंगीय साहित्य संस्था भिलाई शाखा की संरक्षक।                            

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नोट- पोस्ट में प्रयुक्त सभी रेखाचित्र चित्रकार अनुप्रिया के बनाए हुए हैं।

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