सुरक्षित - असुरक्षित शब्दों की सियासत के बीच
जब नन्हीं लड़कियों से ले कर बुढ़ियाओं तक नहीं पहुँच पाते उनके पैने नाखून और खूनी दांत
तो वे माँ - बहन की गालियों से चलाते हैं काम.
उनकी आँखें करती रहती हैं बलात्कार
और मौका पाते ही नोच डालती हैं
किसी फूल से खिली लड़की को.
हर दिन रंगे होते हैं खून से अखबार
और पहुंचा रहे होते हैं चैनल हम तक,
किसी मसली देह की चीत्कार को.
फिर भी देखो,
सियासत में, बेशर्मी से ‘सुरक्षित’ शब्द अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद कर रहा है
जबकि हकीकत में, ‘असुरक्षित’ शब्द अपनी जगह बना चुका है.
2
सबके मौसम एक से नहीं होते
वो, बारिश में यज्ञ कर रहे थे
इन्द्रदेव को बुलाने का,
नाप रहे थे पानी मावठे का.
सूखा अच्छा नहीं लगता
सूखे में,
सूख जाते हैं, आँसू भी !
और वो इन्द्र की मेहरबानी पर सो नहीं पाए रात भर
घर की टीन के छेदों से टपकते पानी ने भर दिए थे
बोतल, डिब्बे, गिलास और परात.
ओ, मौसम तुम आना
झूम कर आना
पर, थोड़ा रहम के साथ आना.
सबके लिए सर्दी, गर्मी और बारिश अच्छी नहीं होती.
3
साल और साल
वर्ष के अंत में
मैं देखती हूँ पीछे मुड़कर
अपनी पीठ थोड़ी थपथपाती हूँ
थोड़े गँवाए समय पर भुनभुनाती हूँ.
बेहद डर जाती हूँ
जब मार्च तक नहीं लिख पाती
कोई कविता,
कोई कहानी,
कोई लेख,
नहीं कर पाती कोई साहित्यिक मंच साझा
नहीं कर पाती किसी ज़रुरतमंद की मदद
बीते महीनों को फूँक मारकर उड़ा देती हूँ
और फिर साल को मुट्ठी में कस कर कभी चलती हूँ बुदबुदाती
तो कभी दौड़ती हूँ महीनों को पकड़ती.
दौड़ते – दौड़ते फिसल ही जाता है, साल मुट्ठी से.
फिर अगले साल के स्वागत में खड़ी हो जाती हूँ
कहते हुए कि
साल,
मुझे अपने साथ – साथ रखना
मेरे पास वक्त बहुत कम है.
4
दिसंबर में कोट
पिछले कुछ वर्षों से
दिसम्बर की खरीददारी की सूची में मेरा कोट भी होता है.
लेकिन सूची में कोट लिखे जाने से खरीदने तक की यात्रा में आते हैं,
अनगिनत पड़ाव.
और मैं याद करने लगती हूँ उन दृश्यों को जो इस यात्रा को और लम्बा बनाते हैं.
मैं कुछ स्कूलों में कड़कती ठण्ड में
बच्चों से पूछती हूँ गलत सवाल कि
“तुम्हें ठण्ड नहीं लग रही...” ?
मुझे अपने सवाल का उत्तर पहले से पता होता है कि
वे सिर झुकाकर उत्तर देंगे, नहीं !
मैं उनके इस जवाब से डरती हूँ कि,
वे ये न कह दें कि उनके पास स्वेटर नहीं है !
इसलिए मैं उनसे गलत सवाल करती हूँ.
मैं गाँव में देखती हूँ कि जवानी में बुढ़ाते किसान,
एक चादर को बिछा भी लेते हैं और उसे ओढ़कर खेत में फसल से घुल भी रहे होते हैं.
वो देर रात तक सर्दी को अलाव से डराते रहते हैं.
पर, सर्दी कहाँ डरती है ?
मैं देखती हूँ
फुटपाथ पर
कि खिलौने बेचती औरत,
फटे पुराने एक कपड़े में बच्चे समेत खुद को लपेटे है.
तो मैं फिर गिनने लगती हूँ अपने स्वेटर, शॉल.
अरे ! मेरे पास तो बहुत हैं, और फिर सर्दी होती ही कितने दिन की है ?
मैं बुदबुदाने लगती हूँ अपने उस पैंतीस साल पुराने स्वेटर के गुण
जिसकी एक बार सीवन उधड़ने पर मैंने मिलते – जुलते रंग की ऊन से उसमें खोपे भर लिए थे.
इतने पड़ाव और इतनी समझाइश के बाद
मैं डिपोजिट कर देती हूँ
अपने कोट खरीदने का विचार अगले दिसम्बर तक.
5 .
भूख
बिना हथियार के भी
मर सकता है
गरीब और मजबूर आदमी.
उसका रोज़गार छीन लो,
धकिया दो उसे,
छोड़ दो सड़कों पर बेसहारा उसे,
आखिर,
कहाँ जाएगा ?
कैसे जीएगा ?
खुद ही आत्महत्या कर लेगा.
साफ़ – सुथरी तमाम तफ्तीशें और
पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहेंगी
कुछ नहीं निकला.
चलो,
हम सब मुक्त हुए !
आखिर,
बहुत काम का भी क्या ?
परिचय
जन्म : 30 जुलाई 1966, राजस्थान के दौसा जिले के बाँदीकुई कस्बे में.
आत्मजा : श्री विजय कुमार तिवाड़ी एवं श्रीमती मायारानी तिवाड़ी.
शिक्षा : एम. ए ( हिंदी व समाजशास्त्र )
पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर.
राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की 75 से अधिक पत्र – पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ व लघुकथाएँ प्रकाशित.
कविताओं का मराठी और नेपाली भाषाओँ में अनुवाद.
पहला कविता संग्रह ‘आईना भीगता है’ 2011 में बोधि प्रकाशन जयपुर द्वारा प्रकाशित.
दूसरा कविता संग्रह ‘भरोसा अभी बचा है’ 2018 में ‘राजस्थान साहित्य अकादमी’ के सहयोग से बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित.
पहला कहानी संग्रह ‘भूरी आँखें घुंघराले बाल’ 2020 शिवना प्रकाशन सीहोर, भोपाल से प्रकाशित.
साझा संग्रह ‘आधी आबादी की यात्रा’ में कविताएँ ( धाद प्रकाशन 2015 ).
साझा संग्रह ‘अँधेरे में उजास’ में कहानी ( वनिका प्रकाशन 2019 ).
शिक्षा, पर्यावरण व सामाजिक मुद्दों पर 60 से अधिक लेख प्रकाशित.
वर्षों से विभिन्न मंचों, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर कविता, कहानी पठन, वार्ताओं में भागीदारी.
विभिन्न विश्वविद्यालयों में शिक्षा के क्षेत्र में आयोजित सेमिनारों में शैक्षिक परिप्रेक्ष्य, विज्ञान, गणित और हिंदी विषय पर चार पेपर प्रस्तुत.
वर्ष 2016 में ‘पर्यावरण पुरूस्कार’.
वर्ष 2017 में ‘बेटी सृष्टि रत्न एवार्ड’..
वर्ष 2018 में ‘वुमन ऑफ़ द फ्यूचर एवार्ड’.
वर्ष 2018 में ‘प्रतिलिपि कथा सम्मान’.
पिछले 32 वर्षों से शिक्षा और सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं में सक्रिय. वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन जयपुर में बतौर सन्दर्भ व्यक्ति के रूप में कार्यरत तथा राजस्थान में ट्री – वुमन नाम से विख्यात.
दो काव्य संग्रहों के बाद यह पहला कहानी संग्रह ‘भूरी आँखें, घुंघराले बाल’.
संपर्क :
ए - 108, रामनगरिया जे डी ए स्कीम,
एस के आई टी कॉलेज के पास, जगतपुरा, जयपुर 302017
फोन : 7742191212, 9413337759 Mail – anupamatiwari91@gmail.com
नोट- पोस्ट में प्रयुक्त रेखाचित्र चित्रकार अनुप्रिया के हैं।
बहुत शुक्रिया !
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