सोमवार, 24 जनवरी 2022

समकाल : कविता का स्त्रीकाल-13

अनीता भारती

अनीता भारती एक्टिविस्ट लेखिका हैं ,ज़मीन पर स्त्री और दलितों के हक में आवाज बुलंद करनेवाली अनीता भारती की कविताओं में हाशिये की स्त्री का शोषण,संघर्ष और मुश्किलें ,यथार्थ के उसी रंग-रूप में सामने आते हैं जैसा घट रहा है।यह भोगा और निकट से देखा हुआ सच है जो अन्तिम स्त्री की सामाजिक ,राजनैतिक और पारिवारिक स्थिति को जस का तस हमारे सामने रखता है।यह कविताएँ आलोचकों के लिए बयान हो सकते हैं,हो सकता है कलावादी इन्हें कविता ही न माने किन्तु मानव जीवन का कटु यथार्थ जहाँ पूरी सजगता और अपने नग्न यथार्थ के साथ आता है यह वह कविताएँ हैं।

इन कविताओं में अस्तित्वबोध से उपजा आक्रोश और व्यवस्था पर तीखा तंज मुखर शब्दों में व्यक्त होता है।स्त्रियों की राजनैतिक समझ पर प्रश्नचिह्न लगानेवालों को इन कविताओं को जरूर पढ़ना चाहिए ।यह स्त्री कविता की सबसे बुलंद आवाजों में एक हैं-


मुजफ्फनगर से लौटने के बाद...

रुखसाना का घर..



1.

सोचती हूँ मैं

क्या तुम्हें कभी भूल पाउंगी रुखसाना

तुम्हारी आँखों की गहराई में झांकते सवाल

तुम्हारे निर्दोष गाल पर आकर ठहरा

आंसू का एक टुकड़ा

बात करते-करते अचानक

कुछ याद कर भय से काँपता तुम्हारा शरीर

तुम्हारे बच्चें जिनसे स्कूल 

अब उतनी ही दूर है 

जितना पृथ्वी से मंगल ग्रह

किताबें जो बस्ते में सहेजते थे बच्चे

अब दुनिया भर की गर्द खा रही है

या यूं कहूं रुखसाना किताबें

अपने पढ़े जाने की सज़ा खा रही है

तुम्हारी बेटी के नन्हें हाथों से

उत्तर कापियों पर लिखे 

एक छोटे से सवाल 

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की विशेषताएं पर

अपना अर्थ तलाश रहे है




2.

रुखसाना 

सामने कपड़े सिलने की 

मशीन पड़ी है

ना जाने कितनी

जोड़ी सलवार कमीज 

ब्लाऊज पेटीकोट

फ्राक बुशर्ट झबले

सिले है तुमने

तुम्हारे दरवाजे ना जाने कितनी बार 

आई होगीं गांव भर की औरतें

यहां तक की चौधरी की बहु भी

तुम्हारे सिले कपड़े पहन

इतरा कर तारीफ करते हुए

किसी आशिक की तरह

तुम्हारे हाथ चुमकर डॉयलोग मारते हुए

मेरी जान क्या कपडें सिलती हो

पर अब धुआं-धुआं पलों को बटोर

कहती है निराश रुखसाना 

शरणार्थी कैम्प के टैंट में पडी- पडी 

मैं भी इस सिलाई मशीन की तरह ही हूँ

जंग खाई निर्जीव

मेरे जीवन का धागा टूट गया है

बाबीन है कि अपनी जगह फंस गई है

रुखसाना याद आती है मुझे रहीम की पंक्तियां

पर तुमसे कैसे कहूँ

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाएं




3

रुखसाना

तेज आवाज के साथ

रात भर बरसा पानी

शरणार्थी कैंप के टैंट में सोते 

बच्चों की कमर उस 

निर्लज्ज पानी में डूब गई

सब रात में ही अचकचा कर उठ बैठे

बच्चों के पास अब कल के लिए सूखे कपड़े नही है

रुखसाना

तुम्हारी आँखों के बहते पानी ने

कई आंखों के पानी मरने की कलई खोल दी है.



4


पिछले पंद्रह दिन दिन से

हमारे पास खाने के लिए कुछ नही है

कहती है रुखसाना 

दिल-दिमाग में चल रहे झंझावात से 

लड़कर निष्कर्ष निकालती है रुखसाना

दंगे होते नही करवाएं जाते है

हम जैसों का वजूद रौंदने के लिए

जो रात-दिन पेट की आग में खटते हुए

अपने होने के अहसास की लड़ाई लड़ रहे है




5

ओ मुजफ्फर नगर की 

लोहारिन वधु

जब तुम आग तपा रही थी भट्टी में

उस भट्टी में गढ़ रही थी औजार

हंसिया, दाव और बल्लम

तब क्या तुम जानती थी

कि ये सब एक दिन

तुम्हारे वजूद को खत्म करने के काम आयेगे

कुछ दिन पहले तुम खुश थी चहक रही थी 

अम्मी आजकल हमारा काम धंधा जोरो पर है

भट्टी रात दिन जलती है

इस ईदी पर हम दोनों जरुर आयेगे

तुमसे मिलने और ईदी लेने

पर क्या तुम उस समय जानती थी

यह औजार किसानों के लिए नही

ये हथियार दंगों की फसल

काटने के लिए बनवाएं जा रहे है

कितनी भोली थी तुम्हारी 

ये ईदी लेने की छोटी सी इच्छा 



6

दंगे सिर्फ घर-बार ही नही उजाड़ते

दंगे सिर्फ काम-धंधा ही नही उजाड़ते

दंगे सिर्फ प्यार-स्नेह ही नही तोड़ते

दंगे सिर्फ जान-असबाब ही नही छीनते

दंगों की धार पर चढ़ती है औरतों-बच्चियों की अस्मिताएं

अगर ऐसा ना होता तो

बताओं क्यों

वे निरीह असहाय मादा के सामने 

पूरे नंगे हो इशारे से दिखाते है अपना ऐठा हुआ लिंग



7

रोती हुई रुखसाना कहती है

अब हमारा कौन है

जब हमारे अपने बड़ो ने 

ही हमें गांव-घर से खदेड दिया

चार पीढी से पहले से रहते आए है हम यहां

इन सारी पीढियों के विश्वासघात की कीमत क्या होगी

क्या उसको चुकाना मुमकिन है

कितनी कीमत लगाओगे बताओ

प्यार से खाए गए एक नमक के कण का कर्ज 

चुकाने में चुक जाते है युग

तब कैसे चुकाओगे तुम

चार-चार पीढियों के भरोसे विश्वास के कत्ल का कर्ज



8

रखसाना कहती है 

नहीं जानती साईबेरिया  कहां है

नही जानती साईबेरिया में कितनी ठंड पड़ती है

नहीं जानती साईबेरिया के बच्चे क्या पहनते है

नही जानती साईबेरिया की  औरतें कैसे रहती है

नहीं जानती साईबेरिया के लोग क्या खाते-पीते है

नहीं जानती कि वहां बीमार बच्चों को देखने डॉक्टर आता है नहीं

नहीं जानती कि वहां मरे बच्चों का हिसाब कैसे चुकाया जाता है

पर रुखसाना जानती है 

साईबेरिया की ठंड में कोई खुले आसमान के नीचे नही सोता




9

रुखसाना 

गहरे अवसाद में है

जान बचाकर भागते वक्त

घर में छूट गई

नन्ही बछिया चुनमुन

लड़ाकू मुर्गा रज्जू

घर के बच्चों की लाड़ली 

सुनहरे बाल वाली सोनी बकरी

सब  गायब है

रुखसाना को पता चला है

कटने से पहले 

रज्जू ने बहुत हाथ पैर मारे थे

बाकी चुनमुन और सोनी 

कहां है कौन ले गया

कोई नही बताता





10.


रुखसाना

सोचती है

कौन हूं मैं 

क्या हूं मैं

औरत मर्द या इंसान

मेरे नाम के साथ या पीछे

क्या जोड़ा जाना चाहिए

चुन्नु की अम्मा

मेहताब की जनाना 

सलामुद्दीन की बेटी या

सरफराज की बाजी

जब मैं भाग रही थी

तब मैं कौन थी

चुन्नु की अम्मा

मेहताब की जनाना 

सलामुद्दीन की बेटी या

सरफराज की बाजी

रुखसाना सोचती है

इन सब से परे


वह बेजान माँस की बनी एक जनाना है बस



                                                                       अनीता भारती

परिचय-

सुप्रसिद्ध दलित लेखिका, एक्टिविस्ट, दलित लेखक संघ की राष्ट्रीय अध्यक्ष।कविता, कहानी,लेख,संपादन के क्षेत्र में निरन्तर सक्रिय अनीता भारती दिल्ली में एक विद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत हैं।




1 टिप्पणी:

  1. SEO4BLOG (जय खीचड़)25 जनवरी 2022 को 2:03 am बजे

    सादर प्रणाम सोनी पाण्डेय ‌जी,

    आज पंकज चतुर्वेदी जी की फेसबुक को वॉल पर आपसे संवाद के ब्लॉग पोस्ट को देखा। पढ़कर सुकून महसूस परंतु जब गाथांतर के ब्लॉग को टटोला तो अचंभित हुआ। ब्लॉग पर अबतक कुल 109 आलेख अद्यतन करने के उपरांत गूगल पर गिने-चुने ही लेख पढ़ने को उपलब्ध है।

    वर्तमान प्रौद्योगिकी दौर में इंटरनेट सेवा से दूरियां सिमेटते हुए हर जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाती है। शायद ऐसा ही सोच कर आपने गाथांतर को एक ब्लॉग के माध्यम से अंतरजाल पर उपलब्ध असिमित पाठकों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया कुछ हद तक आप इसमें सफल भी हुए लेकिन तकनीकी ज्ञान के अभाव में आप अधिकाधिक पाठकों को जोड़ने में असमर्थ रहे हैं। इसके साथ आप ही गूगल विज्ञापन सहभागिता ( Google Adsense) आय अर्जित करने में से भी वंचित रहे हैं।
    अगर आप चाहते हैं कि आपके ब्लॉग की सारी पोस्टें पाठकों के लिए गूगल पर उपलब्ध हो। और नई अद्यतन होने वाली ब्लॉग पोस्ट गूगल न्यूज़ पर भी प्रदर्शित हो तो इसमें हम आपकी सहायता कर सकते हैं। इसके साथ ही अगर Google Adsense से अपने ब्लॉग पर विज्ञापन दिखाकर आय अर्जित करना चाहते हैं तो भी हम सहायता कर सकते हैं।

    ब्लॉग गूगल पर उपलब्धता ( Blog Instant Index Service + Google News Publishers Approval सेवा = ₹ 500(एकमुश्त)
    Google Adsense Approval Service = ₹ 1500 (एकमुश्त)

    उपरोक्त सेवाओं के साथ आपको एक प्रिमियम ब्लॉग थीम सेटअप + तकनीकी सहायता मिलेगी।



    मेरे बारे में:

    https://seo29boss.blogspot.com/2021/10/seo-4-blog.html

    अग्रिम शुभकामनाओं सहित
    जय खीचड़
    संपादक : Bishnoism.org
    वाट्सऐप: 8696872929
    मेल: jai@bishnoism.org

    जवाब देंहटाएं