सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

प्रतिभा श्रीवास्तव की कविताएँ

#समकाल_कविता_का_स्त्रीकाल

साहित्य की अपनी सत्ता है और यहाँ कविता का अपना दरबार और दरबारी हैं।आप उन्हीं नामों तक पहुँच पाते हैं जिनके नाम की मुनादी इन दरबारों से होती है।इसी दरबारी कविता के समानांतर एक आम जन की कविता कहीं भी जीवन की नमी पा अँखुआ उठती है और बार -बार पैरों से कुचले जाने,जड़ों के काटने और नकारने के बाद भी छछन-बिछन जाती है।
इधर गाँवों और कस्बों से भी इस कविता के अँकुर फूटे हैं और तेजी से इनकी लताएँ दरबारों को ठेंगा दिखाते उस आम भारतीय स्त्री का प्रतिनिधित्व कर रहीं है जिनका लिखा किसी लोकगीत की तरह पीले पड़े पन्नों में बिहउती बक्से में सड़-गल जाता था। 
प्रतिभा आज़मगढ़ जनपद में एक स्कूल टीचर हैं और दो बेटियों की माँ हैं।उन्हें दो बेटियों का ताना ख़ूब सुनने को मिलता है।कुछ आज भी सलाह दे देते हैं कि एक बेटा तो होना ही चाहिए।सहकर्मी पुरुष लिखनेवाली औरतों को निर्लज्ज तक की उपमा मुँहपर दे देते हैं और उनके उत्तर से मुँह की भी खा लेते हैं। यही हमारी दुनिया है और यही यहाँ की रवायत है।वह लिख रही हैं अपने जीवन का अनुभव और बड़ी बेबाकी से पितासत्ता से सवाल पूछती हैं अपनी कविताओं में।
कल गाथांतर के मंच से जनपद की युवा कवयित्री प्रतिभा सिंह की कविताएँ आपके बीच थीं आज उन्ही की हमनाम प्रतिभा श्रीवास्तव की कविताएँ हम आपसे साझा कर रहे हैं।उम्मीद है इन गाँव ,कस्बों की आवाज आप तक पहुँचेगी और इनकी कविता इस बात की मुनादी करेगी कि बदल रही है औरतों की दुनिया उस आखिरी कोनों में जहाँ कभी सिर उठा कर बोलने का साहस नहीं था।

प्रतिभा श्रीवास्तव की कविताएँ...

"भाग्य और ईश्वर "
भाग्य औरतों के मत्थे थोपा गया अश्लील रुदन है 
बेटियाँ भाग भरोसे जनी गईं
भाग भरोसे एक बाप के बारह  हुईं
सबने कहा ये बेहया के फूल हैं
 डाढ बन जाएंगी
इनको तेल ,बुकुवा , उबटन की जरूरत नहीं रही
भाग भरोसे बेटियों के  पैरों में जान आई
बेटियां सब  खाती थीं
साग ,भात ,बासी मच्छी , थाली की बची रोटी ,छूटा  दाल का कटोरा, कच्चा ,पक्का सब
बेटियां बाप, भाई कक्का, काकी भी खाती थीं
ये कुल का शाप कही गईं

जिन बेटियों की पीठ पर भाई जन्में
 बड़भागी कहाईं
इनको जरा दुलार मिला
 कभी दूध , घी मिला
 कभी अम्मा के हाथ की ताजी रोटी 
कभी जलेबी का बड़ा छत्ता
बेटियाँ बसवारी की कईन सी बढ़ती रहीं
इनके माथा, होंठ , कान , नाक ,हाथ, पैर से भाग विचारा गया
ऊँचा माथा ,चौड़े हाथ , चपटे पैरों वाली लड़कियाँ अभागी  हुईं
छोटा मत्था ,सुंदर हाथ और छोटे पैरों वाली लड़कियाँ सुभागी हुईं
सुभागी लड़कियों के रिश्ते घर आये
इनके ब्याह के लिए नकारे गए लड़के
ये मान दुलार से ब्याही गईं
जिन घरों में पुत्र जन्में
वहाँ पूत जन्मने वाली बहू
का मान बढ़ा
ये गोल बिंदी सेंदुर की लंबी रेखा सजाए साड़ी गहनों से लदी मर्दों की पसंदीदा औरतों ने
 मर्दों की हर बात मानी 
ये घर की लड़की को दफनाने से खुद दफन हो जाने तक
 होंठो पर मुस्कान सजाए पीती रहीं आसुओं में घुला रक्त
इन घर के पुरुषों की चहेती औरतों ने 
स्वयं का पुरुष हो जाना ही सच माना
जिन अभागी बेटियों के बाप वर खोजते थके
उनके फेरे बेल के पत्ते , केले के तने , नीम के पेड़ से हुये
इनके ब्याह के लिए केवल एक पुरुष चाहिये था
ये भाग भरोसे ब्याही गईं
ये कम सूरत ,कम सीरत ,कम दहेज वाली बहुओं को खाने में पहले दिन  बासी कढ़ी मिली
ब्याह की दूसरी सुबह ये रसोई में थीं
इनकी बनाई दाल में स्वाद न आया ,सब्जी रंगहीन रही और रोटियाँ कभी गोल न बनीं
ये फूँकती रहीं चूल्हे में साँसे
पिघलाती रहीं गर्म रोटी पर  प्रेमिल ख्वाब
इनकी आँखे धुयँ के बादलों संग भाप बनीं
इनकी पीठ पर लाल चिमटों के निशान पड़े
इनकी उंगलियां गर्म तवे पर सुर्ख हुईं
ये मायके की उपेक्षित बेटियाँ  ससुराल की बेशऊर बहू रहीं 
ये बेटा जनने के लिए कई कई बार गिराती रहीं कोख 
ये पुरुष प्रेम के लिए पूजती रहीं बरसों बरस ईंट, पत्थर , शिवाले
इनके देह में अबूझ रोग लगे 
ये बड़ी कम उम्र निकलीं 
कोई स्टोव फटने से 
कोई बच्चा जनने से
कोई कुआँ ,तालाब डूब मरी
किसी  किसी का मरना हमेशा राज रहा
इन लड़कियों के लिए जन्म से मरण तक 
रोया गया भाग्य का रोना 
ये जन्मते ही बोझ समझी गई लड़कियाँ 
पूरी उम्र अभागी रहीं।
भाग्य और ईश्वर औरतों के हिस्से ही अधिक आया 
मर्दों ने चालाकी से  अपने हिस्से सदा पुरुषार्थ रखा।
 

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"माँग और पूर्ति"

आँचल से बांध लिया एक टुकड़ा बादल,
जब बन्द मुट्ठी में कसाया मन
पलकों पर कुछ बूंद बारिशें अटकीं
दर्द दबा लिया दांतों के बीच
कि टीसता रहा सदैव
वह आह्लादित थी, 
अचंभित भी
कठोर बाहुपाश में जब तलाशा जा रहा था मोक्ष 
कसे जा रहे थे बन्धन के तीखे ताँत 
उसकी
 स्वीकृति के उपबन्धों में 
वह मानुषी से परे
 मिथकों में वर्णित अप्सरा थी ।
तेज नाखूनों से गीली मिट्टी पर लिखे गए असंख्य प्रेमगीत
मधुर लहरी में डूबी बावरी , 
रजनीगन्धा हुई
बादलों संग हवा सी लिपटी 
आकाशगंगा की लहरों पर तैरती 
तेजोमय तारा थी,
वह चिंता ,भय ,दुख से मुक्त थी
आत्मसात किया 
ईश्वरीय सत्ता का सिंहासन
पूर्ण माना जीवन का प्रारब्ध
किन्तु......
अन्तर्ध्वनित , 
आशंकित प्रश्न
क्या  ... इतना भर  ...
प्रेम है ??
अचानक थम गये सरपट भागते सातों घोड़े
सूरज ने मुँह छुपा लिया 
खोहों से निकल टिड्डियाँ फड़फड़ाने लगी
यह बोलती है ...!
प्रश्न करती हैं....!
प्रेम में प्रश्न।
प्रेम ईश्वर है.!
ईश्वर पर प्रश्न ...!!
पाप है..! ,पाप है...!, पाप है...!।
अफवाहों के पँख पहन बहुत दूर उड़ चला प्रश्नवाचक चिन्ह,
काश..
  घड़ी की सुइयाँ भी प्रेम में पड़ती 
अड़ कर रोक देतीं ,
ऋतुओं का बदलना
पावस की आभा में खिलखिलाते इंद्रधनुषी रंग
छिटक गए ...
क्या इतना भर प्रेम है ..?
जैसे हर बरस लौट आते हैं रूठे आवारा बादल 
दहलीज तक आती कच्ची मिट्टी की सड़क पर ठहरे पैरों के निशान लौट पड़े
सड़क के दूसरे छोर पर
फुसफुसाती हवाओं ने देखे पीठ पर चुभती अंगुलियाँ
गहनतम क्षणों में,
आकुल आँखों में घुलित कतरा भर खारा प्रश्न ......
क्या मात्र यही प्रेम है ??
कसी हुई गुलेल से छिटके कँचे
जीतनी थी जमाने की दौड़ 
छूटता गया 
गाँव ,नदी पहाड़
लौटती डाक के पत्र सदा ही अलिखित  रहे।
एक ऋतु जो बीत  गई
ठहर गई कहीं भीतर
तमाम कोशिशों में एक कोशिश
कि पढ़ सके भाषा 
बांच ले ज्ञान 
किताबों ने जिसे प्रेम सिखाया
वह  मात्र भावनाओं का व्यापार है
प्रेम  के अर्थशास्त्र  में
संवेदनाएं मुद्रा
और अवधारणाएं
माँग और सापेक्ष , निरपेक्ष पूर्ति हैं।
 
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"प्रेम "

काल की निर्मम पीठिका पर
 प्रेम का हस्ताक्षर लिखता  ,
नायिका की आँखों में 
सुंदर सपनों की श्रृंखला सजाता
नायक,
विस्तृत दृढ़ वक्ष पर, सिर टिकाए 
 अनिश्चित ,
किंतु आश्वस्त  , 
उलझी उंगलियों के बीच ब्रम्हाण्ड थामे हुए
 नायिका ।
यह दृश्य  सबसे सुंदर  हो सकता था ..,
बशर्ते कि ....,
प्रेमियों की हत्या के षड्यंत्र न रचे जाते ।
खोने और पाने के बीच , 
प्रेम के हिस्से अक्सर खोना आया ।
मछलियों का सागर के विरुद्ध होना..?
हवा को खिड़कियों में कैद रखना ..,
पृथ्वी को सूर्य के विरुद्ध करना
क्या सम्भव है..?
प्रेम के सौंदर्यशास्त्र में,
 विछोह सर्वाधिक सुन्दर था ..।
बहुत बेबस थी ,
मुंडेर पर बैठी हुई मैना
उसने असंख्य विरह के गीत गाये ..!
सिर पटक ,पटक कर पत्थरों को  मोम होने की सौगंध दी  
परन्तु ...,
प्रेम का परिणाम बदलना 
चिड़िया के बस में कब था..??
मनुष्यता के विकासक्रम में,
'सृजन ' सृष्टि का सार है ।
तथापि ,
प्रेम कैद है,
 सभ्यता की ऊँची मीनारों में 
प्रेमियों की मुट्ठी में बन्द हैं 
लाल,
गुलाबी,
पीले रंग की तमाम चिट्ठियां
और,
प्रेमिका के गालों पर ,
खिंची हैं प्रतीक्षा की कालजयी रेखाएं ।
यकीन मानिए..,
एक दिन , 
समुद्र में नमक इतना अधिक होगा कि ,
गल कर नष्ट हो जाएगी धरती ।
मेरा,तेरा,उसका .....,
ईश्वर एक होगा
 अथ, 
पुनर्जन्म के लिए जुड़े होंगे सैकड़ों हाथ ।
वास्तव में .., 
'प्रेम ' प्रकृति का 'प्राण 'है 
और..,
प्रेमियों की हत्या ,
विश्व की सबसे बड़ी क्षति ।

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"राजधर्म ..  "

 अबकी,  झरबेरी के फूलों का रंग सुर्ख लाल है   
भटकटैया के काँटों की धार बड़ी तेज हुई ।
हवा में कुछ ऐसी तल्खी है कि
बिल्ली के बच्चों ने मना कर दिया दूध पीने से और
मिठाईलाल के कुएँ का पानी खारा हो गया है।
कई दिन से लापता है , 
बेचन की बेटी सोनपतिया 
बंशी किसान की फसल काट ले गए चोर
लेकिन  ...,
कहीं कोई क्षोभ नहीं 
हर्ष ही हर्ष है ।
सब देख रहे राजा को 
टकटकी लगाए
वह न्याय करेगा ....
वह दुःख हरेगा...
खबर फैली है कि.. ,
राजा  सर्वशक्तिमान है 
सर्वकालिक है 
उसे प्राप्त है ईश्वर का वरदान
उसके छूने भर से लोहा मोम और
 मोम लोहे में बदल जाता है।
बड़े भोर  ही 
मरचिरैया ने  टेर  लगाई है
सशंकित है पंडित रामदीन की गाय 
जो चरने जाती है 
कलीम कसाई के खेत के बगल
कामरान को एतराज है 
कि , उसके घर में मंदिर की घण्टियों की आवाज क्यों पहुँचे
राजा दोनों आँख खोल कुछ न देख पाने का अभ्यास कर रहा
राजा के अनुयायी तैयार हैं 
 अबकी ,
राजतिलक विशेष है
अबकी ,
अनिवार्य है मानव रक्त 
दीर्घजीवन के लिए।
अबकी, गौण  है भूख , प्यास ,दर्द 
 विशेष है ....,
राजधर्म ।।

***********



"मृत्यु से संवाद "

मौत..!
 खबर तुम कर देना..
दरवाजा खटखटाना या 
डोर बेल बजाना 
भीतर कदम रखने से पहले  ठहरना कुछ देर
आँधी जैसे , मत आना ..
न आना चोर जैसे
आना नदी की मद्धम लहर जैसे
अतिथि बन मत आना
कुछ रोज पहले आने के 
खबर करना 
टेलीफोन , फैक्स , एस एम एस 
या, 
 किसी रँगीन कागज पर भेज देना मेरा उजड़ा हुआ घर 
घर के भीतर 
बिलखते परिजन 
पगलाई प्रेमिका
और मिट्टी में धँसी मेरी अंकशायिनी 
मौत ..! 
 ये न हो पाए तो एक संकेत भर कर देना ।।
मेरे बच्चे  बहुत छोटे हैं ,
कहने का मौका भर  देना 
कि.... ,
गिद्ध बहुत हैं यहाँ
तुम्हें नोंच कर फेंक दें 
 इससे पहले ही
उड़ना सीख लो ।
न सही तो ....
पैरों पर दौड़ कर ,
बचना सीख लो
 माँ ... उसके जोड़ो में दर्द बहुत 
जिस  मालिश से दर्द जाता है 
 वह मेरे ही हाथ हैं।
पिता ...,
उन्हें दिखता कम है
मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाने से डरते उनकी आँखे मुझे देख के 
चमकती हैं ।
उन्हें सूचना देनी है 
 कि ...
ऑपरेशन सक्सेसफुल।
पत्नी.... 
उसका ईश , प्रेमी और और पूरी दुनिया 
 मैं...
उससे कहना है...  कि ,
मैं , उसे उतना नहीं चाहता जितना कि वह मुझे  
उससे प्रेम में किये ..
 छल गिनवाने हैं।
प्रेमिका ....जिसने कुछ नहीं चाहा  कभी
उसके साथ  एक पूरा दिन गुजारना है।
मौत ..! 
थोड़ा ठहरना ...
मुझे किये गए पाप और पुण्य का लेखा जोखा बनाना है।
ज्यादा नहीं ....
हफ्ते भर के कुल सात दिन  देना मुझे ,
छोटे बडे ,
सारे काम निबटा लूँगा ।

**************

"पति त्याज्या "

अभी कल की ही बात है.....
तुम्हारे कपड़े  ..हेयरस्टाइल ..चाल ढाल..  सक्रियता
ऑफिस से मिले किसी  काम में
जान लगा देने की तुम्हारी आदत चर्चा का विषय थी
उनका कहना था ..
 तुम्हारी बॉस के साथ बहुत नजदीकी है ..
ये कहते हुए 
उन दो पुरुषों के चेहरे पर  कुटिल मुस्कान थी ..
वहाँ बैठी दो औरतें उनकी हाँ में हां मिला रही थीं ।
एक तीसरी औरत जो शायद उनके विरोध में बोलना चाह रही थी 
 चुप कर गई  ।
उनका कहना था  ,
दुपटटा न लेना
दो  स्मार्ट फोन रखना
ऑफिस  के कार्यों में आगे रहना
प्रेम  कविता लिखना
फेसबुक पर फ़ोटो अपलोड करना 
बहस करना
पुरुष मित्र  बनाना.
सब औरतों की चरित्रहीनता के लक्षण हैं जैसे कि तुम्हारे बारे में वे सब जानते  हैं
तुम्हारे चारित्रिक दोष एक एक कर गिनाए जा रहे थे ।
तुम्हारे पक्ष में और उनके मत के विरुद्ध  बहुत से तर्क दिए मैंने
बात सिर्फ तुम्हारी ही तो नहीं थी  
  एक मुट्ठी आसमान  की खोज में निकली हर स्त्री की थी 
मैंने स्त्रियों के हक पर  कुंडली मारे 
कुंठित पुरुष सत्ता के विरुद्ध
एक पूरा वक्तव्य दिया 
वैदिक युग के बाद क्रमशः स्त्री की स्थिति में  अवनति की बात कही
धर्म के ठेकेदारों द्वारा रचित  आडम्बरों को स्त्री विरुद्ध सिद्ध किया
सती प्रथा  के विरुद्ध , समुचित शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए  औरत के  संघर्ष की याद दिलाई
गर्भ में मार दी गईं और बलत्कृत होती औरतों की बात कही ।
मैंने तर्क दिए यदि सावित्री बाई फुले पहला  महिला महाविद्यालय न देतीं 
 लडकियों के लिए विश्वविद्यालयों के द्वार आज भी बंद होते
 कहा कि ,
औरतें ..., 
घर से बाहर निकल रही  सब मिलकर बदलाव लाएंगी.
अभी तो शुरुआत  है 
आगे बहुत कुछ बदलेगा
जब संसद से सड़क तक आधी औरतें होंगी 
तब यह दुनिया औरतों के जीने लायक बन पाएगी
लेकिन ...
वे कब हार मानने वाले ...
ठठाकर हँसे ...
तुम्हारे ,घर.. परिवार ...खानदान. का समुचित पोस्टमार्टम के बाद
मेरे घर तक आये 
पुनश्च
तुम्हें पति त्याज्या
और मेरे लिये अर्थपूर्ण  मुस्कुराहट दिखा
अंततः
वे सन्तुष्ट हुए।।

*************

"छोड़ी गई प्रेमिकाएँ"

मैं प्रेम में नहीं ...!
ये सम्बन्ध , जरूरत भर है ।
जितना मुश्किल है ...
एक प्रेम में डूबी लड़की के लिए यह सुनना,
उतना ही आसान है ..
एक प्रेम से उकताए पुरुष के लिए यह कहना ।
लड़की तवे पर छौंकी जिंदा मछली सी छिटक गई,
प्रेमी की आँखों में ,
अमलताश के फूलों का रंग झक्क सफेद था।
वह सहेज लेती है , विभ्रांत मन
क्या ...?
अब नहीं आओगे  !
पता नहीं ..!
प्रेम व्यापार न हुआ
 कि  अधजगी रातों के बदले मांग लेती लड़के का एक पूरा दिन ।
दुर्लभता ही सदैव आकर्षक है,
सुलभता   से चाहत मर जाती।
यह मरी हुई चाहतों के लिये जिंदा बची लड़कियाँ..,
प्रेम बाँट ,
खाली  शीशी सा लुढ़कती हैं ,
रात बेरात ,
सूनी छत पर टहलती हैं,
भरी नींद में ,
चौंक कर जगती हैं।
ब्रम्हाण्ड की थाह लेने  वाला पुरुष,
औरत का मन की थाह न पा सका ।
बेहद उदास दिनों में ...,
लड़की पुरुष के लिए , 
घनी छांह... ,
मीठे जल का स्रोत.. ,
उजला दीपक ..., 
मां की लोरी... ,
कहानियों की सुंदर किताब थी ।
जिसे  सीने से लगा , वह बच्चा बना रहता।
जिन परिदों के अपने नीड़ नहीं .,
वे ,दूसरों के घोसले में अपने अंडे सेंकते हैं।
भावुक लड़कियां ,अभिशप्त हैं सेंक का आश्रय बनने को।
उसके ह्रदय में दर्द  का समंदर है।
भरी आंखों से प्रेमी को विदा करती लड़की ,
हमेशा ...खुश रहने की दुआ करती है ।
सड़क के उस पार जाने की शीघ्रता में 
प्रेमी नहीं देख पाता  , 
 कि ,उसके नाम का पहला अक्षर काढ़े हुए रुमाल को लड़की ने मुट्ठी में कस लिया है।
बाद के दिनों में...
स्याह रात की रोशनाई से लिखती है निशब्द चिट्ठियां ..,
पुराने सिक्कों को , मिट्टी की तहों में दबाती  
सिक्कों के घुल जाने की उम्मीद करती ।
ये , याद के कटोरे में तिनका तिनका घुलती हैं ।
ये ,भूले प्रेमी का नाम बायीं हथेली के उल्टी तरफ लिखाती हैं।
छोड़ी गई प्रेमिकाओं को ,
पुरानी डायरी सा भूलता प्रेमी ..
किसी नए जूड़े में ,रजनीगन्धा के फूल सजाते हुए गाता ...
"मेरे प्यार की ,उमर हो ,इतनी सनम,
तेरे नाम से शुरू ,तेरे नाम से खतम"
भावुक लड़कियाँ  ,
प्रेमियों के इन्तेजार में 
धरती में जमा 
कोई पेड़ बन जाती हैं।

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नाम  - प्रतिभा श्रीवास्तव 
रसायन शास्त्र एमएससी 
प्राथमिक शिक्षिका 
पता -आजमगढ़ उत्तर प्रदेश 
कविताएं प्रकाशित .जन सन्देश टाइम्स समाचार पत्र,सुबह सवेरे समाचार पत्र , सामयिक परिवेश पत्रिका,अदहन पत्रिका, बहुमत पत्रिका,  कविता बिहान पत्रिका ,स्त्री काल पत्रिका,स्त्री काल ब्लॉग ,पुरवाई ब्लॉग स्वर्णवानी पत्रिका । अभिव्यक्ति के स्वर में लघुकथाएं  इंडिया ब्लॉग और प्रतिलिपि पर कहानियां प्रकाशित।



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