शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014



प्रेम नंदन की तीन कवितायें
प्रेम नंदन समकालीन हिंदी कविता के युवा कवि है |आज गाथांतर में में हम पहलीबार उनकी कविता प्रकाशित हुईं हैं |प्रेम नंदन की कवितायें नवउदारवादी परिवेश में घुट रहे आम आदमी की बेचैनी को बखूबी व्यक्त करती हैं |उनकी कविताये वगैर किसी कलात्मक कलाबाजी के निपट सपाट ढंग से अपनी बात कह देने में माहिर हैं आइये आज हम प्रेम नंदन की  तीन कवितायें पढ़ते हैं

बड़े सपने बनाम छोटे सपने

                               

एक अरब से अधिक
आबादी वाले इस देश में
मुटठी भर लोगों के
बड़े-बड़े सपनों
और बड़ी-बड़ी फैक्टियों
शानदार हालीडे रिसार्टस.... से बना
विकास रथ चल रहा है
किसानों-मजदूरों की छाती पर।

ये बनाना और बेचना चाहते हैं
मोबाइल कंप्यूटर कार
ब्रांडेड कपड़े मॅंहगी ज्वैलरी़.....
उन लोगो को
आजादी के इतने सालों बाद भी
जिनकी रोटी
छोटी होती जा रही है
और काम पहुंच से बाहर।

जिनके छोटे-छोटे सपने
इसमें ही परेशान हैं
कि अगली बरसात
कैसे झेलेंगे इनके छप्पर
भतीजी की शादी में
कैसे दें एक साड़ी
कैसे खरीदें-
अपने लिए टायर के जूते
और घरवाली के लिए
एक चांदी का छल्ला
जिसके लिए रोज मिलता रहा है उलाहना
शादी के लेकर आज तक।

लेकिन इन मुटठी भर लोगों के
बड़े सपनो के बीच
कोई जगह नहीं है
आम आदमी के छोटे सपनों की ।
                                       
                                   
                  
   मानसिक विकलांगता
                 
तुमने मेरा नाम पूछा
मैंने बता दिया
लेकिन अब भी तुम्हारे चेहरे पर
लटका है
एक बड़ा सा प्रश्नचिन्ह!

तुम्हारे सब्र का बाध
एक  दो मिनट में ही टूट जाता है
इधर उधर की दो चार बातों के बाद
तुम्हारी मानसिक विकलागता
फिर उसी बिन्दु पर
अपना सिर धुनने लगती है।


मैं सब समझ रहा हॅं
तुम नाम के साथ
कुछ और भी जानना चाहते हो।

ओ तथाकथित ऊंची जाति का मुखौटा पहने चेहरे
अच्छा सुनो!
मैं बताए ही देता हू

इस दुनिया में
जिसे भी तुम सबसे नीच समझते हो
मैं उसी जाति से हू

         
  वैसा नहीं हू मैं
                                       
कुछ लोग
जो समझते हैं अपने आपको
मानवता के पुजारी
धर्म के ठेकेदार
समाज के नियंता
वे कहते हैं मुझे
असभ्य जंगली देहाती भुच्चड़
और न जाने क्या-क्या
क्योंकि उनके हिसाब से
जैसा होना चाहिए मुझे
वैसा नहीं हू मैं।


चाहते हैं वे
कि बना रहू मैं
लकीर का फकीर
द्रष्टिहीन पोंगापंथी अंधविश्वासी
उनकी कलाबाजियों में सहयोगी
चलू उनके पीछे-पीछे
नाक की सीध में
करू अनुसरण उनकी हर बात का
मिलाउॅ उनकी हाँ  में हाँ ।
अपने विचारों सपनों -
आदर्शो और सिद्धांतों को
गिरवी रख दूं  उनके चरणों में।
वे ऐसी ही
और बहुत-सी आशायें
करते हैं मुझसे ।


पर, कैसे मान लू मैं
उनकी हर बात
ठीक वैसी ही
जैसा कहते हैं वे।
कैसे गला घोंट दॅूं
अपने सपनों का
कैसे छोड़ दू मानवता
कैसे नीलाम कर दू अपना अस्तित्व।
नहीं, वैसा नहीं बन सकता मैं
जैसा चाहते हैं वे।
                      
                                                     
                          प्रेम नंदन
                                 उत्तरी शकुन्त नगर
                                          फतेहपुर                   

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार कवितायेँ
    ओ तथाकथित ऊंची जाति का मुखौटा पहने चेहरे
    अच्छा सुनो!
    मैं बताए ही देता हू

    इस दुनिया में
    जिसे भी तुम सबसे नीच समझते हो
    मैं उसी जाति से हू
    पर, कैसे मान लू मैं
    उनकी हर बात
    ठीक वैसी ही
    जैसा कहते हैं वे।
    कैसे गला घोंट दॅूं
    अपने सपनों का
    कैसे छोड़ दू मानवता
    कैसे नीलाम कर दू अपना अस्तित्व।
    नहीं, वैसा नहीं बन सकता मैं
    जैसा चाहते हैं वे।

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  2. ये कवितायेँ एक सार्थक बयान हैं / बेहतरीन कविताओं के लिए प्रेमनंदन को शुभकामनायें

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  3. शानदार कविताएँ,हार्दिक बधाई

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