शनिवार, 25 अक्तूबर 2014


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नाम - राधा श्रोत्रिय"आशा"
जन्म स्थान - ग्वालियर

शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र,
एम.फिल -राजनीती शास्त्र
जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर
निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी,
कटियार मार्केट,कोलार रोड
भोपाल
Mobile no. 7879260612
सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) ।
स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा ।
..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध
लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक।
जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना,
करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा.
मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक ।
१५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित ।
"आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा" 


राधा जी आज कविताओं के क्षेत्र में कोई नया नाम  नहीं हैं,नियमित रूप से उनकी रचनायें प्रकाशित हो रही हैं  राधा जी की कवितायों में गहराई है।उनमे  नारी मन का दर्द परिलक्षित होता है की कैसे एक नारी पति -बच्चों की खातिर त्याग पर त्याग करती जाती है और खो जाती है उसकी पहचान उसकी हँसी। ............. हर कविता भावों में डुबोती है तो आइये आज गाथांतर के ब्लॉग पर पढ़े राधा जी की कवितायेँ 



***#*** आईने मैं कैद ***#***
हैराँन हूँ........
कुछ ढ़ूढ रही हूँ,
खो गयी है जो मुझसे कहीं!
मेरी हँसी..........
तेज रफ़्तार वक़्त मैं,
सबकी खुशियों की खातिर,
कहीं छूट गयी है मुझसे!
मेरी हँसी...........
पर कहाँ ???
खोज रहीं हूँ मैं!
जिनकी खुशियों की खातिर ,
ताउम्र भागती रही मैं!
मेरा घर, पति,बच्चे,
मेरे अपने,
इन सबमें गुम हो गयी है!
मेरी हँसी........
शिकायत है आज,
उन्हें ही मुझसे!
पति बात - बात पर ,
उलाहना देते हैं !
क्या हुआ है ,
तुम्हें
कितनी चिढ़-चिढ़ ,
करती हो,
आजकल!
हैराँन रह जाती हूँ मैं,
खोजती हूँ !
मेरी हँसी........
सोचती हूँ ???
जो कल तक कहते थे,
खुशियों के फूल झरते हैं ,
बातों से तुम्हारी!
नहीं समझ पाती कि किसे,
क्या हुआ है!
आज तक सब,
इन्हीं की खुशियों के खातिर ,
ही तो किया!
पर वो खुश नही मुझसे,
क्यों ???
और अब तो बच्चे भी!
जिन्हें बड़ा कर संस्कारों की,
दौलत से सींचने मैं,
खुद का असतित्व ,
ही भुला बैठी!
सिमट रह गयी ,
"पत्नी"और "माँ" मैं!
न अपनी कोई ख्वाईश न,
कोई चाहत!
वो तो इन सबमें ही,
सिमट रह गयी!
माँ आप इतना गुस्सा,
क्यों करती हो!
क्यों करती हो,
आप काम!
जब आपसे नहीं होता!
समझ ,
नहीं पाती क्या,
जबाब दूँ!
इनकी खुशियों के लिये तो,
मैं सब कर रही थी!
फ़िर भी खुश नहीं,
क्यों करती हूँ मैं ?
ये सब!
सोचा अपने लिये,
कुछ वक्त निकालूँ!
खोज लूँ अपनी,
"हँसी"
सबकी खुशियों को,
सहेजने मैं ,
जो कहीं छूट गयी मुझसे!
ढ़ूढ़ा...सब जगह,
तलाश लिया पूरा घर!
याद आया स्टोर रूम,
जहाँ मेरा पुराना आईना था!
जब उसमें अपना चेहरा
देखती,
शरमा जाता था,
मेरी हँसी से वो!
ऐसा मेरे पति,
पहले कहते थे!
इसी मैं कैद है मेरी हँसी...
फ़िर से इसे अपने कमरे मैं,
लगा लेती हूँ!
देखूँगीं रोज इसे,
लौट आयेगी मेरी हँसी!
मेरे पास.......
हैराँन हूँ........
कुछ ढ़ूढ रही हूँ,
खो गयी है जो मुझसे कहीं!
मेरी हँसी..........
...राधा श्रोत्रिय"आशा

******** दर्द- ऐ -दिल **********
मेरे दर्द- ऐ -दिल की सदा,
किसी ने सुनी नही !
मेरे रिसते जख्मों पर मरहम,
किसी ने रखा नहीं !
जलती रही तुम्हारी याद की ,
अगन में ता-उम्र !
तुमने अपने एहसास कि औंस से ,
मुझे छुआ तक नहीं !
मिट गये जिसके खातिर हम ,
उसे हमारी खबर तक नहीं !
किससे करें हम शिकवा कि कोई,
दर्द- ऐ -दिल की सुनता नही!
आँसू भी न रहे अब आँख में देखो,
धड़कन कि हमें कुछ खबर नहीं !
कैसा हमारा नसीब कि देखो ,
काँटों में भी चुभन नहीं !
इस कदर सताया है जमाने ने हमें,
कि शहद में भी हमें खार ही मिली !
क्यों है जालिम इतनी ये दुनियाँ,
हमारे जज्बातों का भी मोल नहीं!
दफ़न कर दिया हर एहसास ,
जिसकी खातिर हमने !
हमारी वफ़ा पर उसे अब ,
एतबार तक नही !
टूट रहा भरोसा अब खुद से ही,
किस तरह जियेंगें,खुद खबर नहीं !
मेरे दर्द- ऐ -दिल की सदा,
किसी ने सुनी नही !
मेरे रिसते जख्मों पर मरहम,
किसी ने रखा नहीं !
...राधा श्रोत्रिय"आशा"

***एहसास***
१ .किसने देखा है कल को
किसको खबर है पल की
जिनको नहीं एहसासों
की कीमत
वो क्या समझेंगे तड़प
किसी के दिल की .

२.बहुत आसाँन है
ऊँगली उठाना किसी पे
अपने गिरेंबाँ मैं झाँकना
उतना ही मुशकिल है .

३.बहुत आसाँन है
दम भरना मोहब्बत का
पर करके निभाना
उतना ही मुशकिल है .

४.यूँ तो आसाँन नहीं
होता सफ़र जीवन का
पर हमसफ़र मनचाहा हो
तो फ़ूलों भरी ड़गर है .

५ .जीवन के सफ़र मैं
मिलते तो हैं
हमराह अकसर
पर जो दिल मैं बस जाये
वही सच्चा हमसफ़र है .


*****ज़ख्म *****
तुम्हारे दिये,
ज़ख्म ही....
अब
मकसद हैं,
मेरे जीने का!
और
किसी दर्द का,
असर,
अब मुझे
नहीं होता!
कर याद तुम्हें,
हरा ,
कर लेती हूँँ!
तुम्हारे दिये,
जख्मों को!
मरहम ,
बन जाती है!
मेरे लिये,
तुम्हारी याद !
अज़ीज़
होते हैँ जो ,
जाँ से ज्यादा!
बेहद ,
खास होती है!
उनकी,
दी हर चीज़!
हमें भी हमारे,
ज़ख्म,
जाँ से ज्यादा,
अज़ीज़ हैं!
इसमें तुम्हारी,
यादें जो हैं!
भूलना,
नहीं चाहते है,
हम जिन्हें!
बहुत अज़ीज़ हैं हमें,
प्यार मैं मिलें ,
ज़ख्म भी...

*****प्यार (एक एहसास) ******
तेरे प्यार को ही मेंने,
अपना ,
खुदा बनाया है!
दुनियाँ की हर शै मैं ,
मुझे तू ही ,
नजर आया है!
जब भी दुनियाँ की ,
भीड़ से,
दिल मेरा घबराया है!
अपने
ख्यालों मैं ,
तेरेएहसास से
मेंने ,
दिल को बहलाया है

" दिल"
जब तन्हाँ बैठे तो ,
तुम्हारा ख्याल आया,
और दिल भर आया!!
हमारी नजरों की ,
ओस से भीगी,यादें !!
दर -परत-दर,
खुलती चली गई,
और दिल भर आया!!
जो अफ़साने,
अंजाम तक न पहूँचें,
और दिल में ही ,
दफ़न हो गये!!
जेहन में,
दस्तक दे उठे!!
वो एहसास फ़िर ,
मचल उठे,
और दिल भर आया!!
बहुत कोशिश की
दिल के बंद,
दरवाजे न खोले!!
पर नाकाम रहे,
जो वादा तुमसे ,
किया था ,
वो टूट गया,
और दिल भर आया !!
…राधा श्रोत्रिय “आशा ”

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