शनिवार, 20 सितंबर 2014

रसोईघड़ी
-वोल्फगांग बोर्शर्ट
(मूल जर्मन से अनूदित, अनुवादक-प्रतिभा उपाध्याय)

लोग बहुत दूर से उसे आता हुआ देख रहे थे कि वह गिर पडा . चेहरे से वह बूढा लग रहा था. उसके जाने के बाद लोगों ने ध्यान से देखा कि वह केवल 20 वर्ष का है . वह बेंच पर बैठ गया और अपने हाथ में रखी चीज़ उसने लोगों को दिखाई.
उसने कहा कि यह हमारी रसोईघड़ी है. धूप में बेंच पर बैठे सभी लोगों ने उसे देखा .
हाँ, यह मुझे अब मिल गयी है. यही बच गयी है. उसने प्लेट जैसी गोल घडी सामने रखी और उसके नीले रंग के अंक वह अपनी अंगुली से पोंछने लगा. माफी के अंदाज़ में उसने कहा , मुझे पता है, इसकी कोई कीमत नहीं.  यह अब अच्छी भी नहीं रही , अब यह सफ़ेद रंग की एक प्लेट मात्र है. लेकिन मुझे लगता है कि इसके नीले अंक सुन्दर लग रहे है. इसके संकेतक (सुइयां) बेशक शीट से बने हुए है, यह अब और चल नहीं सकती. नहीं. यह निश्चित रूप से अंदर से टूटी हुई है. लेकिन यह पहले जैसी ही दिखाई दे रही है, हालाँकि यह अब और चल नहीं रही. उसने घडी के किनारे पर अंगुली से एक चक्र बनाया और धीरे से कहा : “ यही बच गयी है.”
धूप में बेंच पर बैठे हुए लोगों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया . एक ने उसके जूतों की ओर देखा और महिला ने अपने बच्चों की गाडी की ओर देखा . तब किसी ने उससे कहा:
“आपने शायद सब कुछ खो दिया है?”
उसने खुशी से कहा: हाँ हाँ .
आप सोचिये, लेकिन सब कुछ, केवल इसे छोडकर! अब केवल यही बची है और उसने घडी को फिर से ऊपर उठा लिया, मानो किसी को इसका पता ही नहीं .
महिला ने कहा , लेकिन यह अब चलती नहीं.
नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है . मुझे भी पता है कि यह खराब है. फिर भी यह हमेशा की तरह ही है: सफ़ेद और नीली. उसने अपनी घडी फिर दिखाई और अपना उत्साह जारी रखते हुए उसने कहा : सबसे अच्छी बात तो मैंने आपको अभी तक बताई ही नहीं . ज़रा सोचिये,  सबसे अच्छी बात तो यह है कि यह 2:30 पर ही रुक गयी है.
फिर सोचिये,  अनुमान कीजिये 2:30 .
“तब तो आपका मकान 2:30 पर महफ़ूज़ हो गया होगा” , एक आदमी ने अपने निचले होठों को दबाते हुए कहा. मैंने यह अक्सर सुना है. जब बम गिराया जाता है, घड़ियाँ बंद हो जाती हैं, ऐसा दवाब से होता है .
उसने अपनी घडी की ओर देखा और सिर हिलाया . नहीं , प्रिय महोदय, नहीं . यहाँ आप गलत हैं. इस बात का बम से कुछ लेना देना नहीं है. आपको हमेशा बम के बारे में बात नहीं करनी चाहिए. नहीं.
2:30 की कहानी एकदम अलग है, जिसे आप बिलकुल नहीं जानते . यह तो एक मजाक है कि यह घडी 2:30 बजे रुक गयी है, 4:15 या सात बजे नहीं . मैं हमेशा 2:30 बजे घर आता था , मतलब रात 2:30  बजे. यह सिर्फ मजाक है . उसने दूसरे लोगों की ओर देखा, लेकिन उन्होंने उसकी ओर से अपनी आँखे फेर लीं. वहाँ कोई नहीं था .
उसने अपनी घडी को हिलाया : निश्चित रूप से मुझे भूख लगती थी, और उस समय मैं हमेशा रसोई में जाता था . तब हमेशा 2:30 बज रहा होता था और तब मेरी माँ आती थी. मैं बहुत धीरे से दरवाज़ा खोलता था, फिर भी वह हमेशा मेरी आहट सुन लेती थी और जब मैं अँधेरे में कुछ खाने के लिए ढूंढ रहा होता था, अचानक रौशनी हो जाती थी और मेरी माँ कार्डीगन पहने, शौल लपेटे नंगे पैर खडी मिलती थी, हमेशा नंगे पैर.  
इसीलिए हमारी रसोई के टाइल्स हमेशा चमकते रहते थे . माँ ने अपनी आँखें मीचीं , उसके लिए रौशनी बहुत तेज थी, चूंकि वह पहले से सोई हुयी थी . यह रात थी .
माँ ने कहा , “फिर इतनी देर से” . इससे अधिक उसने कभी कुछ नहीं कहा. फिर इतनी देर. उसके बाद वह फिर मेरे लिए रात का खाना गरम करती थी और ध्यान रखती थी कि मैंने कैसे खाया . इस दौरान वह हमेशा अपने दोनों पैर आपस में रगडती रहती थी, क्योंकि टाइल्स बहुत ठन्डे थे . रात में वह कभी जूते नहीं पहनती थी . पेट भर खाना खाने तक वह मेरे पास ही बैठी रहती थी. जब मैं अपने कमरे की रौशनी बंद कर देता था, फिर मैं उसे प्लेट हटाते हुए सुनता था . हर रात यही होता था अक्सर अधिकतर 2:30 बजे.
मुझे लगता है निश्चित रूप से वह 2:30 बजे रसोई में मेरे लिए खाना पकाती थी. मुझे यह सब बहुत स्वाभाविक लगता था. वह ऐसा हमेशा करती थी और उसने इससे अधिक कभी कुछ नहीं कहा : “फिर इतनी देर से”. लेकिन यह वह बार बार कहती थी और मैं सोचता था कि यह कभी बंद नहीं होगा . यह अति स्वाभाविक था . यह सब हमेशा ऐसा ही रहेगा.
एक पल के लिए बेंच पर सन्नाटा था. तब उसने धीरे से कहा और “अब?” उसने दूसरों की ओर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था. तब उसने धीरे से सफ़ेद नीली घडी से कहा: अब मैंने समझा यह स्वर्ग था, असली स्वर्ग . बेंच पर एकदम सन्नाटा था.
तब उस महिला ने पूछा: और आपका परिवार ?
वह हंसने लगा: ओह, आपका मतलब मेरे माता पिता? वे भी छोड़ गए, सब छोड़ गए . सब.
आप अपना परिचय दें. मेरा तो सब छूट गया.
एक दूसरे को समझकर वे शर्माते हुए मुस्कुराए, लेकिन उन्होंने एक दूसरे की तरफ देखा नहीं. उसने फिर घडी को ऊपर उठाया और हंसने लगा.
वह हंसा : केवल यह घडी यहाँ. बस यही रह गयी.
और सबसे अच्छी बात यह है कि यह 2:30 पर ही रुक गई है. एकदम 2:30 पर.
फिर उसने और कुछ नहीं कहा. लेकिन चेहरे से वह बूढा लग रहा था . उसके पास बैठे हुए आदमी ने उसके जूतों की और देखा . किन्तु उसने अपने जूते नहीं देखे. वह अब भी “स्वर्ग” शब्द के बारे में ही सोच रहा था.
**********************************************************************************************************************************************
((रसोईघड़ी (die Küchenuhr)  जर्मन लेखक वोल्फगांग बोर्शर्ट की प्रसिद्ध कहानी है. बोर्शर्ट जर्मनी में द्वीतीय विश्वयुद्धोत्तर अवधि के अति लोकप्रिय लेखक हैं, जो मनुष्यता के लिए कभी समझौता नहीं करते. उनकी कृतियाँ द्वीतीय विश्वयुद्धोत्तर अवधि में जर्मनी के सुस्पष्ट/ ध्वंसावशेष साहित्य (Trümmerliteratur) की उत्कृष्ट रचनाएं हैं, जो अतीत एवं भविष्य में मनोरंजन कराती हैं.
रसोईघड़ी एक ऐसे युवक की त्रासदीपूर्ण कथा है, जिसने द्वीतीय विश्वयुद्ध के दौरान बमबारी में अपने माता पिता को हमेशा के लिए खो दिया है. “रसोईघडी” के माध्यम से वह अपनी माँ और उसके प्यार को याद करता है एवं बीते हुए पारिवारिक जीवन को “स्वर्ग” की संज्ञा देता है.))

जन्म : 20 मई 1921 हम्बुर्ग , जर्मनी

मृत्यु :  20 नवंबर 1947

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें