शिक्षादान
राहुल
देव
मास्टर
जी कक्षा में बच्चों को बता रहे थे- 'आज के भागमभाग वाले युग में पैसा एक अहम
जरुरत है जिसके बिना समाज में जी सकने की कल्पना भी नहीं कि जा सकती लेकिन इन सबके
बावजूद हमें अपने नैतिक मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए | ये है आज का सबक ! याद रखना
बच्चों, आज के लिये बस इतना ही' इतने में घंटी बजी और वे कक्षा से बाहर हो गये |
अगले
दिन वे कक्षा में देर से आये तो बहुत शोर हो रहा था उन्होंने बच्चों को डांटा फिर
एक से पूछा, 'बताओ कल मैं क्या पढ़ा रहा था ?'
वह
बच्चा बता न सका | इसपर उन्होंने दूसरे बच्चे को खड़ा किया | उससे पूछा तो उसने
थोड़ा बहुत बताया उसके बाद उन्होंने उससे कहा कि- ‘भई तुम्हारी पिछले महीने की फीस
बाकी है, याद है न |’ बच्चे ने डरते-डरते कहा, सर फीस तो जमा है | इस पर मास्टर
साहब क्रुद्ध होते हुए चिल्ला पड़े- ‘अबे ट्युशन की फीस, पढ़कर भूल गए जनाब | चुपचाप
घर पैसे दे जाना वरना अगली कक्षा में जाना मुश्किल हो जायेगा समझे तुम !’
वह
चुपचाप आँखें नीची किये हुए सुनता रहा | शेष बच्चों ने मास्टर साहब को चेताया, ‘सर
पढ़ाइये !’
मास्टर
साहब ने पढ़ाने के लिए अपना मुंह खोला ही था कि उनका मोबाइल घनघना उठा और फिर तो वे
बातें ही करते रहे | लगभग दस-बारह मिनट बाद जब वे टॉपिक पर लौटे कि तभी घंटी लग
गयी और वे बोले, ‘आज छोड़ देता हूँ तुम सबको , कल पूछुंगा और बता नहीं पाए तब
बताऊंगा | तुम लोगों के कारण मैं कुछ पढ़ा ही नहीं पाता | आइन्दा ऐसी हरकतें कीं तो
सबको उल्टा लटका दूंगा |’ और वे पैर पटकते हुए कक्षा के बाहर चले गए |
उनके
चले जाने के बाद बच्चों ने राहत की साँस ली और बेचारे अगले पीरियड की
किताबें-कापियां उलटने-पुलटने लगे !
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