बुधवार, 24 सितंबर 2014

1.  स्वेटर और रिश्ते
हम बुनते हैं स्वेटर,
फंदे दर फंदे,
कतार दर कतार ,
बहुत सारे शोख रंग
बुनते हैं एक संग,
कई सारे नमूने
आकर्षक और लुभावने
कल्पनाओं को सजीव करते
तब --------
सुन्दर अद्भुत बन ही जाता
जिसका था , उसे जँच जाता
किन्तु -------
समय के साथ छोटा पड़  जाता ,
स्वेटर ही तो था 
सो उधेड़ डाला ,
फिर से बुन लेंगे
नए नमूने के संग
कुछ ही नए ऊन मिलाकर।

रिश्ते भी इसी तरह
हम जीवन में बुनते हैं ,
कभी प्यार , कभी मनुहार ,कभी तक़रार ;
एक -एक क्षण जीते हैं
रिश्तों कि शान में।
सीने से लगा कर रखते है
हर लम्हे को।
हृदय के पटल पर
परत दर परत संजोते
कभी आँखे , तो कभी मन भिगोते।
हाथों से गिर टूट न जाये ,
डर - डर कर यों जीते। .
हथेलियों में भींच के रखते
फिर भी ---------
रेखाओं के खेल से विवश
छिटक कर दूर हो जाता ,
फिर भी दुनिया कि नज़रों में
रिश्ता ही कहलाता।
स्वेटर और रिश्तो में कई समानताएं ,
बस एक बड़ा सा अंतर -
स्वेटर तो बुन जाते हैं दोबारा भी ,
उधड़े हुए रिश्तो को ,
हम चाहकर भी
कभी नहीं बुन पाते।

संगीता पाण्डेय 

                      (  चित्र गूगल से साभार )

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