शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

रतनारे नयन उपन्यास पर आशीष कुमार की पड़ताल

सृजन की प्रक्रिया स्वयं का प्रस्थान है : रतनारे नयन
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                                               आशीष कुमार 

हर शहर का अपना एक इतिहास होता है और इतिहास अपने गर्भ में अनगिनत सच छिपाए रहता है।इतिहास में जितना कुछ लिखा है,उससे कहीं अधिक अनलिखा भी होता है।इसी ' अनलिखे सच ' को खंगालने की कोशिश इतिहासकार और लेखक करते रहे हैं।किसी भी शहर का इतिहास लिखना बेहद जोखिम भरा काम है। रतनारे नयन के माध्यम से उषा किरण खान ने  पटना शहर के इतिहास को लिखकर इसी जोखिम भरे सच से हमारा साक्षात्कार कराया है।इस उपन्यास की मूल कथावस्तु पटना शहर के इर्द गिर्द बुनी गई है। पटना शहर की सामाजिक - राजनीतिक गतिविधि एवं बहुसंस्कृति का चित्रांकन रतनारे नयन में जीवंतता के साथ हुआ है। इस शहर की विशेषता यहां के निवासियों की जीवटता एवं जिजीविषा में निहित है।यह शहर ऐतिहासिक, पारम्परिक और आधुनिक भी है।यहां विकास की प्रक्रिया धीमी रही,पर रही जरूर। अंग्रेजो से लेकर गौतम बुद्ध की कर्मभूमि रही पटना की धरती को लेखिका ' रतनारे नयन ' के माध्यम से देखती हैं और इक्कीसवीं सदी की आधुनिकता को व्याख्यायित करती हैं।जिस प्रतीक का प्रयोग लेखिका ने रतनारे नयन के द्वारा किया है,वह पटना की आदि देवी 'पटन देवी ' हैं - " इस विस्तृत फलक को लगातार देखती रहती हैं निस्पृह खड़ी पटना की आदि देवी पटन देवी उन्हीं के रतनारे नयन हैं।" ( फ्लैप से )
इस उपन्यास का प्रारंभ मारवाड़ियों और सुनारों के आगमन से होता है।राजपूताने से रोजी - रोटी की तलाश में मारवाड़ियों का यहां आना,इस शहर के विकास में उनकी भूमिका और अमीरी - गरीबी को एक साथ साधने वाले एक नए किस्म के शहर का उदय इसकी पृष्ठभूमि में समाहित है।इस उपन्यास का कैनवास व्यापक है।इसमें एक के समानांतर छह कथाएं एक साथ चलती है। इस उपन्यास में बबलू गोप एवं रूपा का प्रसंग,ज्योति और शांतनु बजाज, रमन जी - श्यामा, राखाल - प्रमिला, रीना एवं सी एल झा , उमेंदर कौर और यश ठाकुर की कथा प्रमुख है।उपन्यास में एक और प्रमुख किरदार शाहनी ( बूढ़ी स्त्री ) का है, जो स्त्री चेतना की प्रतीक है। प्रगतिशील सोच की इस स्त्री ने स्त्री - चेतना को न केवल प्रतिबिंबित किया है, बल्कि यह बताने का प्रयत्न भी किया है कि अब स्त्री उपेक्षिता नहीं रही। इस कृति को कई अर्थों में भी पढ़ा जा सकता है।यह उपन्यास वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था और सफेदपोश कारगुज़ारियों पर विमर्श का पाठ भी प्रस्तावित करता है। राजनीति में युवाओं का आगमन, चुनावी हथकंडे, अपहरण, बलात्कार आदि पर चिंतन की नई जमीन तैयार करता है।
लेखिका स्त्री चेतना को नया आयाम देती है।स्त्री शिक्षा की प्रबल समर्थक उपन्यास की एक स्त्री पात्र श्यामारमण स्त्री - शिक्षा के प्रति विचार व्यक्त करते हुए कहती है - " स्त्रियों की दुनिया बसने लगी है।एक नई दुनिया,एक नया विस्तार,एक नया क्षितिज।उस क्षितिज पर अक्षम, अशिक्षित,दलित, पीड़ित स्त्री का संसार और सक्षम, शिक्षित संघर्ष सम्पन्न स्त्री का मिलन होने का समय है।यह समय है उषा की लालिमा इठलाती हुई गंगा,सोनभद्र पुनपुन के तरल जल में उतर रही है।आधी आबादी निर्भय होकर सेमिनारों, कांफ्रेंसों और समारोहों में चांद की कलाओं की तरह चिंतनपरक रहा।" ( पृष्ठ : 179)
मूल कथा बलातकृता रुपा और बबलू गोप की चुनावी राजनीति को लेकर है।क्षेपक रूप में नगर को राजधानी बनाने का औचित्य, फांसीवाद का विस्तार और आधुनिक प्रजातंत्र की स्थापना की पहल इत्यादि आते हैं।
साहित्य और संस्कृति के मुद्दे हर शहर को एक खास रुख़ देते हैं।किस तरह से साहित्य सभाओं पर ठेकेदारों का कब्जा होता गया और शहर की साहित्यिक परम्परा का अवसान हो गया बनारस - इलाहाबाद की तरह पटना भी इससे अछूता नहीं है।एक उदाहरण देखिए - "साहित्य संस्कृति में गहरे धंसे बिहारियों ने तब भी अपना काम नहीं छोड़ा है।हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन के ठकुराई चंगुल में चले जाने,वहां काठ की तलवार की ठकाठक सुनने से बाज आए साहित्यकारों ने अपने - अपने ठिकाने ढूंढ़ लिए।( पृष्ठ:136)
साहित्यिक राजनीति पर यह तल्ख़ टिप्पणी है।पटना शहर के प्रति लेखिका का यह लगाव ही है कि वह हर छोटी बड़ी घटना को उपन्यास में गूथने का प्रयास करती हैं।यह कृति पटना शहर के सुर्ख और स्याह दोनों पक्षों पर रोशनी डालती है। शहर के उदभव और विकास के साथ ही बबलू गोप की राजनीतिक इच्छाएं निरंतर बढ़ती रहती हैं। रतनारे नयन की कथा इक्कीसवीं सदी के आम चुनाव की पूर्व संध्या पर आकर ख़तम होती है।इस घोषणा के साथ कि इक्कीसवीं सदी स्त्रियों की होगी।
उपन्यास को पढ़ते हुए एक सवाल उभरता है कि शहर और राजनीति को केंद्र बनाकर लिखे गए उपन्यास में शिक्षा व्यवस्था और विश्वविद्यालयों की गुटबाजी को लेकर सवाल क्यों नहीं उठाए गए हैं ? जबकि लेखिका खुद अकादमिक दुनिया में एक लंबा समय गुजारा 
 है।क्या इस उपन्यास को आंचलिक की श्रेणी में रखा जा सकता है ? वास्तव में, रतनारे नयन नायक केंद्रित नहीं,पटना शहर केंद्रित कथा है। यहां शहर खुद नायक की भूमिका में है।इसमें पटना शहर का व्यक्तित्वीकरण है।उपन्यास का शीर्षक अमृतलाल नागर के खंजन नयन की याद दिलाता है।कितनी संदर्भवान हैं ये पंक्तियां-"साहित्य में तीन स- समाज,उसका संघर्ष,उसकी संवेदना है तो वह खालिश है वरना बेमानी खलिश।"
इस उपन्यास में साहित्य के तीन 'स' अपने पूरे उठान पर हैं।
( रतनारे नयन, लेखिका- उषाकिरण खान
 प्रकाशन संस्थान,नई दिल्ली )
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*( लेखक युवा आलोचक हैं।)
मो:09415863412/08787228949.

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