रविवार, 25 जनवरी 2015

शहनाज़ की कविताऐं



शहनाज़ इमरानी की कवितायें

 १ हद

हद का ख़ुद कोई वजूद नहीं होता
वो तो बनाई जाती है
जैसे क़िले बनाये जाते थे
हिफ़ाज़त के लिए
हम बनाते है हद

ज़रूरतों के मुताबिक़

अपने मतलब के लिए

दूसरों को छोटा करने के लिए

कि हमारा क़द कुछ ऊँचा दिखता रहे

छिपाने को अपनी कमज़ोरियों के दाग़.धब्बे

कभी इसे घटाते हैं कभी बड़ा करते हैं

हद बनने के बाद

बनती हैं रेखाएं एदायरे

और फिर बन जाता है नुक्ता

शुरू  होता है

हद के बाहर ही

खुला आसमान ए बहती हवा

नीला समन्दर ए ज़मीन की ख़ूबसूरती।

 २ पुरस्कृत  चित्र

बसी हैं इंसानी बस्तियां
रेल की पटरियों के आस .पास
एन जी ओ  के बोर्ड संकेत देते है
मेहरबान अमीरों के पास
इनके लिए है जूठन उतरन कुछ रूपये
रोटी कि ज़रूरत ने
हुनरमंदों के काट दिए हाथ
उनकी आँखों में लिखी मजबूरियाँ
देख कर ही तय होती है मज़दूरी
वो खुश होते है झुके हुए सरों से 
यही पैतृक संपत्ति है
यही छोड़ कर जाना है तुम्हे बच्चों के लिए
तुम्हारे लिए गढ़ी गई हैं कई परिभाषाएं
इनकी व्याख्या करते हैं कैमरे के फ़्लैश
और पुरस्कृत होते हैं चित्र।

३ सब  कुछ ठीक हो जायेगा


माँ बहुत याद आती हो तुम
जानती हूँ माँ कहीं नहीं है
बस तुम्हें तस्वीरों में देखा है
मेंरी दुनियां में तो सिर्फ में हूँ
और है वो सारी चीज़ें जो
एक आम ज़िन्दगी में हुआ करती हैं
सूरज तितलियाँ पतंगें और प्रेम
पड़ोस आवाज़ें बच्चे और किताबें
बूढ़ों और बच्चों के क़िस्से
हर सुबह ज़िन्दगी में बोया जाने वाला रंग
शाम तक कुछ फ़ीका हो जाता है
धूप और फिर ढलती रौशनी के बाद
यहाँ वहाँ से झाँकता काला रंग
देखती हूं तस्वीर पिता की
उसमें भरा हुआ खालीपन
दरख्त पर लटका एक
खाली घोंसला
जिसमे रहने वाले परिंदे 
अनजान दिशाओं की और उड़ गये
सब कुछ ठीक हो जायेगा
पिता कहते थे
वो अपने अल्फ़ाज़ों से
मेरी उम्मीदें जगाया करते थे
कच्चे जख़्मों को हँसने की कला
सिखाया करते थे
रौशनी कुछ और मद्धम हो गई है
देख रही हूँ बचपन को दौड़ते हुए
बूढ़ों को आहिस्ता से घर जाते हुए
जीवन की जिजीविषा लिए
ज़िन्दगी की मिट्टी के साथ 
कुम्हार के चाक की तरह घूमते हुए लोग
अपनी.अपनी लड़ाई में जीते हैं
एक उम्मीद के साथ
आगे बढ़ते हुए कि एक दिन
सब कुछ ठीक हो जायेगा।



शहनाज़ इमरानी
जन्मस्थान . भोपाल मध्य प्रदेश
शिक्षा . पुरातत्व  विज्ञानं अर्कोलॉजी  में स्नातकोत्तर
सृजन . पहली बार कवितायेँ कृतिओर  के जनवरी अंक में छपी हैं।
प्रकाशअधीन पुस्तक . दृश्य के बाहर
 मोबाईल नंबर . 9753870386 






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